उषा कविता का भावार्थ और प्रश्न उत्तर

उषा कविता का भावार्थ या व्याख्या और प्रश्न उत्तर 


प्रात नभ था बहुत नीला शंख जैसे
भोर का नभ
राख से लीपा हुआ चौका
(अभी गीला पड़ा है )
बहुत काली सिल ज़रा से लाल केसर से
कि जैसे धुल गई हो
स्लेट पर या लाल खड़िया चाक
मल दी हो किसी ने

उषा कविता का प्रसंग – प्रस्तुत पद्यांश हमारी हिन्दी की पाठ्य-पुस्तक ‘आरोह‘ में संकलित कविता ‘उषा‘ से ली गई है। इसके कवि ‘शमशेर बहादुर सिंह‘ जी हैं। प्रस्तुत पद में कवि ने सूर्योदय के ठीक पहले के पल-पल परिवर्तित शब्द चित्र को दर्शाया है।

उषा कविता का भावार्थ या व्याख्या – कवि अपनी कल्पना के द्वारा बताता है कि गाँव में सूर्योदय से पहले का आकाश शंख के समान बहुत नीला दिखाई दे रहा है। भोर अर्थात् सूर्योदय से पहले आकाश ऐसा दिखाई दे रहा है जैसे किसी ने राख से चौका अभी-अभी लिया है, जो अभी तक सूखा नहीं है। कवि कहता है कि जैसे- सूर्य की उदित होती हुई लालिमा काली सिल पर गिरती है, तो ऐसा लगता है उसकी सारी कालिमा धूल गई हो । कवि कहता है जैसे-जैसे सूर्य की किरणें पृथ्वी पर गिरती हैं तो ऐसा प्रतीत है कि जैसे किसी नन्हें-नन्हें अदृश्य हाथों ने स्लेट की कालिमा पर चाक से रंग भर दिया हो ।

उषा कविता का काव्य सौन्दर्य

(क) भाव पक्ष –

1- कवि ने गाँव में होने वाली सुबह का अलौकिक वर्णन किया है।
2- चौका बताने से कविता में सौंदर्य उत्पन्न हो गया है।

(ख) कला पक्ष –

1- भाषा सहज, सरल एवं सरस है।
2- उर्दू, तत्सम, तद्भव शब्दों का प्रयोग प्रवाहमयी ढंग से हुआ
3- ‘प्रात नभ था बहुत नीला शंख जैसे’ में उपमा अलंकार का प्रयोग हुआ है।

नील जल में या किसी की
गौर झिलमिल देह
जैसे हिल रही हो।
और
जादू टूटता है इस उषा का अब
सूर्योदय हो रहा है।

प्रसंग– पूर्ववत ।

उषा कविता का भावार्थ या व्याख्या – कवि बताता है कि सूर्य की उदित किरणें नीले जल में गिरने पर ऐसा प्रतीत होता है जैसे कोई गौरे वर्ण की सुंदर अप्सरा नृत्य कर रही हो। इस तरह से उषा अर्थात् सुबह का जो जादू था सूर्य के उदय होने पर वह धीरे-धीरे कम होने लगा है अर्थात् सूर्य उदय हो गया है और उसने अपना संपूर्ण पृथ्वी पर अपना साम्राज्य स्थापित कर लिया है ।

उषा कविता का काव्य सौन्दर्य

(क) भाव पक्ष –

1- सुबह का वातावरण देखने योग्य और अनुपम होता है, इसलिए हमें प्रातः जल्दी उठकर इसके अनुपम सौन्दर्य के दर्शन करने चाहिए।

(ख) कला पक्ष

1- भाषा में तत्सम व तदभव शब्दों का सुन्दर समागम है।
2- ‘गौर झिलमिल देह जैसे हिल रही हो’ में उपमा अलंकार का प्रयोग है।
3- प्रातः जल्दी उठकर प्राकृतिक सौन्दर्य के दर्शन करने हेतु कवि हमें प्रेरित कर रहा है।

उषा कविता का प्रश्न उत्तर 


1. कविता के किन उपमानों को देखकर यह कहा जा सकता है कि उषा कविता गाँव की सुबह का गतिशील शब्दचित्र है?

उत्तर– कविता के राख से लिये हुए चौके का गीला होना, काली सिल, लाल खडिया, चाक का मलना, गौर झिलमिल देह का हिलना उपमानों को देखकर हम कह सकते हैं कि उषा कविता गाँव की सुबह का गतिशील शब्द चित्र है।

2- भोर का नभ
राख से लीपा हुआ चौका
(अभी गीला पड़ा है )

नयी कविता में कोष्ठक, विराम चिह्नों और पंक्तियों के बीच का स्थान भी कविता को अर्थ देता है। उपर्युक्त पंक्तियों में कोष्ठक से कविता में क्या विशेष अर्थ पैदा हुआ है? समझाइए।

उत्तर– उपर्युक्त पंक्तियों में कोष्ठक से कविता में यह विशेष अर्थ प्रकट हुआ है कि जो चौका राख से लिया गया था वह अभी तक सूखा नहीं है अर्थात् उसे अभी-अभी लिया गया है। यदि (अभी गीला पड़ा है) यह बात कोष्ठक में नहीं बताई जाती तो हम यह अनुमान नहीं लगा सकते थे किजो चौका राख से लिपा गया है उसे कब लिपा गया था। कोष्ठक में यह बात लिखने से इसमें यह विशेषता पैदा हो गई है कि चौका अभी-अभी लिपा गया है।

उषा कविता अपनी रचना


अपने परिवेश के उपमानों का प्रयोग करते हुए सूर्योदय और सूर्यास्त का शब्दचित्र खींचिए की

उषा कविता आपसदारी


सूर्योदय का वर्णन लगभग सभी बड़े कवियों ने किया है। प्रसाद की कविता ‘बीती विभावरी जाग री‘ और अज्ञेय की ‘बावरा अहेरी‘ की पंक्तियाँआगे बॉक्स में दी जा रही हैं। ‘उषा‘ कविता के समानांतर इन कविताओं को पढ़ते हुए नीचे दिए गए बिंदुओं पर तीनों कविताओं का विश्लेषण कीजिए और यह भी बताइए कि कौन-सी कविता आपको ज़्यादा अच्छी लगी और क्यों?

बीती विभावरी जाग री !
अंबर पनघट में डुबो रही तारा घट ऊषा नागरी ।
खग-कुल कुल-कुल-सा बोल रहा,
किसलय का अंचल डोल रहा,
लो यह लतिका भी भर लाई
मधु मुकुल नवल रस गागरी ।
अधरों में राग अमंद पिए,
अलकों में मलयज बंद किए
तू अब तक सोई है आली
आँखों में भरे विहाग री।
– जयशंकर प्रसाद

भोर का बावरा अहेरी
पहले बिछाता है आलोक की
लाल-लाल कनियाँ
पर जब खींचता है जाल को
बाँध लेता है सभी को साथ:
छोटी-छोटी चिड़ियाँ, मँझोले परेवे, बड़े-बड़े पंखी
डैनों वाले डील वाले डौल के बेडौल
उड़ने जहाज़,
कलस-तिसूल वाले मंदिर – शिखर से ले
तारघर की नाटी मोटी चिपटी गोल धुस्सों वाली उपयोग-सुंदरी
बेपनाह काया को:
गोधूली की धूल को, मोटरों के धुएँ को भी
पार्क के किनारे पुष्पिताग्र कर्णिकार की आलोक-खची तन्वि रूप-रेखा को
और दूर कचरा जलानेवाली कल की उद्दंड चिमनियों को, जो
धुआँ यों उगलती हैं मानो उसी मात्र से अहेरी को हरा देंगी।

-सच्चिदानंद हीरानंद वात्स्यायन ‘अज्ञेय’

उत्तर– कवि शमशेर बहादुर सिंह ने ‘उषा’ कविता में सूर्योदय से पूर्व के नभ के सौंदर्य का वर्णन करने के लिए आकाश को शंख, सूर्योदय से पूर्व केआकाश को राख से लीपा हुआ चौका, पूरे उदय होते सूर्य के सौंदर्य को लाल केसर से धुली सिल या खड़िया चाक से मली स्लेट के समान उपमान प्रयोग कर कविता को अत्यन्त प्रभावशाली बना दिया है। योग कर इसी कविता के समानांतर दी गई कवि जयशंकर प्रसाद की कविता ‘बीती विभावरी जाग री’ में कवि ने रात्रि का मानवीकरण आकाश रूपी पनघट में तारा रूपी घड़ा भरती रात्रि रूपी नागरी (नगर की स्त्री) में किया है।सूर्योदय होने का अत्यन्त सुन्दर वर्णन, पक्षियों का चहचहाना, कलियों का खिलना, लताओं का फूलों से भरना- सभी स्थितियों का मनोहारी मानवीकरण कविता में दृष्टव्य है। कवि सच्चिदानंद हीरानंद वात्स्यायन की कविता ‘बारा अहेरी’ में कवि ने भोर को बावरा अहेरी का अत्यन्त सुन्दर मानवीकरण देकर सूर्योदय के बाद के परिवेश का अत्यन्त सुन्दर वर्णन किया है। चारों ओर के शोरगुल का सजीव वर्णन अत्यन्त मनोहारी हुआ है।

तीनों कविताएँ वातावरण के सौंदर्य का सजीव चित्र उपस्थित करती हैं। शमशेर बहादुर सिंह की कविता में सूर्योदय होते सौंदर्य का चित्रण है तो जयशंकर प्रसाद की कविता तथा अज्ञेय जी की कविता में सूर्योदय के बाद के वातावरण का सजीव चित्रण हुआ है। तीनों कविताओं में से कवि शमशेर बहादुर सिंह की कविता अत्यन्त संक्षिप्त, सरल तथा प्रभावशाली है क्योंकि कवि ने नवीन उपमानों के प्रयोग द्वारा नवीन प्रयोग किए हैं जो अत्यन्त सटीक एवम् मनोहारी हैं। अतः हमें शमशेर बहादुर सिंह जी की कविता में गेयता, चित्रात्मकता, नवीनता, सरलता, संक्षिप्तता, सारगर्भिता आदि गुण होने के कारण अधिक अच्छी लगी है।

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