पहलवान की ढोलक पाठ के प्रश्न उत्तर आरोह कक्षा 12

पहलवान की ढोलक पाठ के प्रश्न उत्तर आरोह कक्षा 12 


1. कुश्ती के समय ढोल की आवाज और लु’ न के दाँव-पेंच में क्या तालमेल था? पाठ में आए ध्वन्यात्मक शब्द और ढोल की आवाज़ आपके मन में कैसी ध्वनि पैदा करते है, उन्हें शब्द दीजिए ।

उत्तर– लुट्टन पहलवान ढोलक को अपना गुरु मानता है, उसकी थाप उसे एक गुरु के समान प्रेरित करती है। ढोलक की अलग-अलग ताल कापहलवान के लिए अलग-अलग अर्थ है- चट्-धा, गिड़-धा यानि ‘आ जा भिड़ जा’। चटाक् -चट-धा का अर्थ है- ‘उठाकर पटक दे’। चट्-गिङ-धायानि ‘मत डरना’। धाक-धिना, तिरकट-तिना अर्थात ‘दाँव काटकर बाहर आ जा’। धिना-धिना, धिक-धिना अर्थात चित्त करो। इस प्रकार ढोलक कीइन थापों का अर्थ समझकर पहलवान अजेय हो गया और गाँव के लोग उसे प्रेरणापुँज मानने लगे। ढोलक की थापों का इस तरह का प्ररेणादायीअर्थ केवल कलाकार ही निकाल सकता है एक सामान्य संसारी व्यक्ति नहीं। कला का अर्थ कलाकार ही जान सकता। ढोलक की थाप सामान्य व्यक्ति के लिए शोर करने का कारण मात्र है।

2. कहानी के किस-किस मोड़ पर लुट्टन के जीवन में क्या-क्या परिवर्तन आए?

उत्तर– मेला देखने गए लुट्टन ने जब चाँदसिंह उर्फ ‘शेर के बच्चे’ को पलटी मारी तब उसे राज-पहलवान बना दिया गया। उसे सारे राजसी ढाटबाट प्राप्त हो गए। राजाश्रय पाकर पहलवान की कला अपने चरमोत्कर्ष पर पहुँच गई। राजा साहब की मृत्यु के पश्चात हुए सत्ता – परिवर्तन के कारण लुट्टन को राज दरबार से निकाल दिया गया। भूखमरी और महामारी से पहलवान अपने दोनों बेटों सहित मृत्यु को प्राप्त हो गए। दोनों घटनाएँ लुट्टन के उत्थान व पतन का कारण बन जाती है।

3. लुट्टन पहलवान ने ऐसा क्यों कहा होगा कि मेरा गुरु कोई पहलवान नहीं यही ढोल है?

उत्तर– माँ-बाप की मृत्यु के बाद लुट्टन का पालन-पोषण उसकी विधवा सास ने किया था। गाँव के लोग उसकी सास को तरह-तरह की तकलीफ दिया करते थे। उन्हीं सब लोगों से बदला लेने के लिए उसने कसरत करनी शुरू की थी। वह कुश्ती के दाँव-पेच सीखने किसी गुरु पहलवान के पास कभी नहीं गया। परिस्थितिवश पहलवान बने लुट्टन को चाँद सिंह से कुश्ती के समय ढोलक की थाप से ही प्ररेणा प्राप्त होने लगी। जैसे ‘धिना धिना धिक् धिना’ की थाप उसे कह रही थी ‘चित्त करो, चित्त करो’। ऐसा शक्तिवर्धन उत्साह केवल एक गुरु से प्राप्त हो सकता है। यह सबकुछ उसे ढोलक की थाप से प्राप्त हुआ। इसी कारण लुट्टन ने यह बात स्वीकारी कि उसका गुरु कोई पहलवान नहीं यही ढोल है, और अपने दोनों लड़कों को भी ढ़ोल का सम्मान करने तथा उससे प्रेरणा लेने की शिक्षा देता है।

4. गाँव में महामारी फैलने और अपने बेटों के देहांत के बावजूद लुन पहलवान ढोल क्यों बजाता रहा ?

उत्तर– एक कलाकार के लिए कला की सेवा से बढ़कर कुछ भी नहीं होता । लुट्टन पहलवान की तरह वह सारा जीवन उसकी सेवा में व्यतीत करदेता है। ढोल की थाप से प्रेरणा पाकर लुट्टन अजेय हो गया था। महामारी और बेटों की मृत्यु से भी वह हार नहीं मानता और ढोल बजाता रहता है। ढोल को वह अपना गुरु मानता है। उसने सोचा होगा कि जैसे एक पहलवान ढोल की थाप से प्रेरित होकर हारी हुई बाजी भी जीत सकता है। शायद गाँव के लोग भी इससे उत्साहित होकर मौत से हार न मानें। यही कारण थे कि वह मृत्यु आने तक ढोल बजाता रहा। ढ़ोलक की थाप तथा पहलवान की हिम्मत और दिलेरी गाँव के लोगों को आसानी से मरने में सहायक सिद्ध हो रही थी ।

5. ढोलक की आवाज का पूरे गाँव पर क्या असर होता था ?

उत्तर– ढोलक थाप मृत्त – गाँव में संजीवनी शक्ति भरती रहती थी। पहलवान संध्या से सुबह तक ढोलक बजाता था। ढोलक की यह थाप बूढ़े- बच्चे- जवान तथा बीमारों तक की शक्तिहीन आँखों के सामने दंगल का सजीव दृश्य प्रस्तुत करती थी। स्पदंन और शक्ति शून्य नसों में भी बिजली का संचार कर देती थी। वे मृत्यु का सामना करने से डर नहीं रहे थे। ढोलक की यह थाप पूरे गाँव में मौत के भय को कम करके उनमें शक्ति का संचार कर रही थी।

6. महामारी फैलने के बाद गाँव में सूर्योदय और सूर्यास्त के दृश्य में क्या अंतर होता था ?

उत्तर – महामारी के कारण गाँव से दो-तीन लाशें हर रोज़ उठ रही थीं। चारों तरफ लोग दिन रात मौत का भय देख रहे थे। सूर्योदय के समय लोगोंमें यह जानने की उत्सुकता अधिक होती थी कि किस की मृत्यु रात के समय हो चुकी है। सभी अपने-अपने घरों से निकलकर अपने पड़ोसियों औरआत्मीयों को ढाढ़स देते थे। लोग रात के समय मरे हुओं के प्रियजनों को सांत्वना देते थे। सूर्यास्त के समय लोग अपनी-अपनी झोंपड़ियों में चुपचाप चले जाते थे। उनकी बोलने की शक्ति भी समाप्त हो जाती थी। पास में दम तोड़ते पुत्र को अंतिम बार ‘बेटा’ कहकर पुकारने की हिम्मत भी माताओं को नहीं होती थी। जहाँ सूर्योदय के समय एक क्रियाशीलता दिखाई पड़ती है, वहीं सूर्यास्त के समय एक सन्नाटा तथा खामोशी का डर लोगों की पीड़ा को अधिक कर देता है।

7. कुश्ती या दंगल पहले लोगों और राजाओं का प्रिय शौक हुआ करता था। पहलवानों को राजा एवं लोगों के द्वारा विशेष सम्मान दिया जाताथा।

() ऐसी स्थिति अब क्यों नहीं है?
() इसकी जगह अब किन खेलों ने ले ली है?
() कुश्ती को फिर से प्रिय खेल बनाने के लिए क्या-क्या कार्य किए जा सकते हैं?

उत्तर

() कुश्ती या दंगल पहले लोगों और राजाओं का प्रिय शौक हुआ करता था। समय के साथ-साथ लोगों के शौक भी बदल गए। उस समय लोगों के मनोरंजन के साधन कम थे। विज्ञान की उन्नति व सत्ता परिवर्तन ने इसके लिए अनेक विकल्प तैयार कर दिए। साधनों की अधिकता के कारण लोगों के स्वभाव, शौक और रुचियाँ सभी में परिवर्तन हुआ है। जनता में कुश्ती या दंगल का आकर्षण भी कम हो गया है।

() कुश्ती और दंगल की जगह अब पश्चिमी खेलों ने ले ली है, जैसे बॉक्सिंग, जुड़ों-कराटे, ताइक्वांडो, कहानी के अनुसार दंगल का स्थान अब घुड़दौड़ ने ले लिया है।

() कुश्ती को फिर से प्रिय खेल बनाने के लिए सरकार और जनता दोनों को मिलकर उससे जुड़े खिलाड़ियों को विशेष सम्मान प्रदान करें। उनकी सुविधाओं तथा उनके परिवार के लोगों की सुरक्षा का समुचित प्रबन्ध करें। उनके रोजगार तथा भविष्य की चिन्ता को मिटाया जाए, तो कुश्ती को पहले जैसा वैभव प्राप्त हो सकता है।


आशय स्पष्ट करें

8- आकाश से टूटकर यदि कोई भावुक तारा पृथ्वी पर जाना भी चाहता तो उसकी ज्योति और शक्ति रास्ते में ही शेष हो जाती थी। अन्य तारे उसकी भावुकता अथवा असफलता पर खिलखिलाकर हँस पड़ते थे।

उत्तर– लेखक ने गाँव की दयनीय अवस्था का वर्णन करते हुए कहा है कि अमावस्या की काली और ठंडी रात में पृथ्वी पर प्रकाश का नाम तक नहींहै। लेखक ने इस पद में एक प्रतीक के माध्यम से स्पष्ट किया है कि अंधकार को नष्ट करने के लिए यदि कोई टूटा हुआ तारा पृथ्वी पर आना चाहता है तो वह भी बीच में ही नष्ट हो जाता है। अन्य चमकते तारे उसकी भावुकता और असफलता पर हँसते हैं। यहाँ चमकता आकाश सत्ता या शासकों का प्रतीक है जो विलासिता का जीवन व्यतीत कर रहे हैं। अंधकार ग्रामीण जीवन या साधारण जन की दुर्दशा का प्रतीक है। तारा शासक वर्ग उन कुछ भावुक व्यक्तियों का प्रतिनिधित्व करता है जो गरीब और महामारी से पीड़ित लोगों की सहायता करना चाहते हैं, लेकिन ऐसा करने में असफल रहते हैं और साथी-जन की हँसी का पात्र बनते हैं। इस तरह लेखक ने एक पूर्ण प्रतिबिम्ब प्रस्तुत किया है।

9- पाठ में अनेक स्थलों पर प्रकृति का मानवीकरण किया गया है अर्थात् प्रकृति के उपादानों को मानवीय क्रियाएँ करते हुए दिखाया गया है। पाठमें से ऐसे अंश चुनिए और उनका आशय स्पष्ट कीजिए।

उत्तर– पाठ में अनेक स्थलों पर प्रकृति का मानवीकरण किया गया है ऐसे अंश निम्नलिखित हैं

() अँधेरी रात चुपचाप आँसू बहा रही थी।
() गाँव भयार्त्त शिशु की तरह थर-थर काँप रहा था।
() निस्तब्धता करुण सिसकियों और आहों को बलपूर्वक अपने हृदय में ही दबाने की चेष्टा कर रही थी।

() अन्य तारे उसकी भावुकता और असफलता पर खिलखिलाकर हँस पड़ते थे।

पहलवान की ढोलक पाठ के आस-पास


1- पाठ में मलेरिया और हैजे से पीड़ित गाँव की दयनीय स्थिति को चित्रित किया गया है। आप ऐसे किसी अन्य आपद स्थिति की कल्पना करें और लिखें कि आप ऐसी स्थिति का सामना कैसे करेंगे?

उत्तर– प्रस्तुत पाठ में मलेरिया और हैजे से पीड़ित गाँव के लोगों की दयनीय स्थिति का चित्रण हुआ है। ऐसी ही दर्दनाक प्राकृतिक आपदा गाँव में सुनामी लहरों से विनाश होना है। ऐसी स्थिति में हम सुनामी लहरों से घर-बार खोकर हिम्मतपूर्वक अन्य स्थान पर विस्थापित पुनर्वास करके जीवन को परिश्रम से चलाने का प्रयास करेंगे। हमारा परिश्रम, जीवन-शक्ति ही हममें संजीवनी शक्ति का संचार कर हमें जीवन में आशा की किरण दिखाएगी।

2. ढोलक की थाप मृत-गाँव में संजीवनी शक्ति भरती रहती थी- कला से जीवन के संबंध को ध्यान में रखते हुए चर्चा कीजिए।

उत्तर– ढोलक की थाप मृत – गाँव में संजीवनी शक्ति भरती रहती थी क्योंकि मृत प्रायः महामारी के शिकार गाँव के लोगों में आशा की किरणजगाने का काम ढोलक की थाप करती थी। कला का जीवन से अटूट संबंध है। कला सदैव जीवन की प्रेरक शक्ति बनी है। कलाकारों ने लोगों केहृदय में ओज, तेज, वीरता एवम् शक्ति का संचार किया है। सही दिशा-निर्देश कलाकार की कला ही दे सकती है। साहित्यकार, नृत्यकार, संगीतकार, मूर्तिकार एवम् वास्तु कलाकार सदैव अपना जीवन समाज हेतु ही जीते हैं। अतः अपनी कला-कर्म को समाज की उपयोगिता के हिसाब से करते हैं। जीवन कला की रचना करता है और कला जीवन की। इनका आपस में अभिन्न एवम् अटूट संबंध है।

3. चर्चा करें- कलाओं का अस्तित्व व्यवस्था का मोहताज नहीं है।

उत्तर– यह ठीक है कि कलाओं का अस्तित्व व्यवस्था का मोहताज नहीं है। कलाकार अपने मन के भावों की अभिव्यक्ति अपनी कला-रचना मेंकरता है। कलाकार जहाँ चाहे वहाँ, जैसी चाहे वैसी, विषय वस्तु की अभिव्यक्ति करता है। कलाकार कला-रचना के लिए स्वतन्त्र होता है। यह ठीक है कि उसकी कला उसके अनुभवों की सृष्टि होने के कारण समाज में सहायक बन जाती है, किंतु उसकी कला पर समाज की व्यवस्था का कोई बन्धन नहीं होता। इसीलिए कला – कला के लिए भी हो सकती है और कला जीवन के लिए भी।

पहलवान की ढोलक भाषा की बात


1. हर विषय, क्षेत्र, परिवेश आदि के कुछ विशिष्ट शब्द होते हैं। पाठ में कुश्ती से जुड़ी शब्दावली का बहुतायत प्रयोग हुआ है। उन शब्दों की सूचीबनाइए। साथ ही नीचे दिए गए क्षेत्रों में इस्तेमाल होने वाले कोई पाँच-पाँच शब्द बताइए

क- चिकित्सा
ख- क्रिकेट
ग- न्यायालय
घ- अपनी पसंद का कोई क्षेत्र

उत्तर– पाठ में कुश्ती से जुड़ी शब्दावली का अधिकाधिक प्रयोग हुआ है, जैसे- आ भिड़ जा, उठाकर पटक दे, मत डरना आदि प्रेरणा सूचक शब्दोंका प्रयोग कुश्ती के दंगल में होता है। इसके अतिरिक्त पहलवान, पटकना, चित्त करना, दाँव लगाना, दाँव काटना, दाँव-पेंच आदि कुश्ती के खेल से ही जुड़े हुए है। इसके अतिरिक्त चिकित्सा, क्रिकेट, न्यायालय और मोबाइल फोन से जुड़ी शब्दावली निम्नलिखित है

(क) चिकित्सा– आप्रेशन, सर्जरी, टीका लगाना, गोली देना, पट्टी बाँधना।
(ख) क्रिकेट– आऊट, रन, स्टम्प, कैच, बोलिंग, बैटिंग, विकेट कीपिंग।
(ग) न्यायालय– पेशी लगना, तारीख मिलना, जज, वकील, फाइल, सजा, बरी होना।
(घ) मोबाइल फोन-एस. एम. एस., आऊटगोइंग, इन कमिंग, री चार्ज, मिस- -काल

2- पाठ में अनेक अंश ऐसे हैं जो भाषा के विशिष्ट प्रयोगों की बानगी प्रस्तुत करते हैं। भाषा का विशिष्ट प्रयोग न केवल भाषाई सर्जनात्मकता को बढ़ावा देता है बल्कि कथ्य को भी प्रभावी बनाता है। यदि उन शब्दों, वाक्यांशों के स्थान पर किन्हीं अन्य का प्रयोग किया जाए तो संभवतः वह अर्थगत चमत्कार और भाषिक सौंदर्य उद्घाटित न हो सके। कुछ प्रयोग इस प्रकार हैं

() फिर बाज की तरह उस पर टूट पड़ा।
() राजा साहब की स्नेह-दृष्टि ने उसकी प्रसिद्धि में चार चाँद लगा दिए।
() पहलवान की स्त्री भी दो पहलवानों को पैदा करके स्वर्ग सिधार गई थी।

इन विशिष्ट भाषा प्रयोगों का प्रयोग करते हुए एक अनुच्छेद लिखिए ।

उत्तर– लुट्टन पहलवान चाँदसिंह पर बाज की तरह टूटा पड़ा और उसे चारों खाने चित्त कर दिया। राजा साहब ने खुश होकर उसे राज पहलवान बना दिया। राजा साहब की स्नेह-दृष्टि ने उसकी प्रसिद्धि में चार चाँद लगा दिए। लुट्टन ऐशों आराम तथा विलासिता का जीवन जी रहा था, लेकिन कुछ समय पश्चात पहलवान की स्त्री भी दो पहलवानों को पैदा करके स्वर्ग सिधार गई थी।

3. जैसे क्रिकेट की कमेंट्री की जाती है वैसे ही इसमें कुश्ती की कमेंट्री की गई हैं? आपको दोनों में क्या समानता और अंतर दिखाई पड़ता है?

उत्तर– यहाँ क्रिकेट और कुश्ती की कमंट्री की तुलना की गई है। क्रिकेट में खेल का आँखों देखा वर्णन किया जाता है। यहाँ कुश्ती का कमेंट्री के माध्यम से सजीव हो उठता है जैसे- ‘लोगों के आश्चर्य की सीमा न रही, लुट्टन दाँव काटकर बाहर निकला और तुरंत लपककर उसने चाँद की गर्दन पकड़ ली।’ आदि।

दोनों की कमेंट्री में कुछ अंतर भी साफ नजर दिखाई पड़ते हैं। क्रिकेट में खिलाड़ियों की संख्या अधिक तथा खेल की विभिन्न गतिविधियों केकारण कमेंट्री अधिक रोचक और व्यापक होती है। कुश्ती के मुकाबले वहाँ समय भी अधिक होता है। लेकिन अधिक रोच कुश्ती केवल दो पहलवानों के मध्य होती है और समय भी बहुत कम। प्रस्तुत कहानी में कुश्ती की जो कमेंट्री की गई हैं, होती है। कु उसमें केवल चाँदसिंह की वीरता का वर्णन अधिक किया गया है, बहुमत उसके साथ है। लुट्टन सिंह केवल अपनी बहादुरी और ढोलक की थाप से ही प्रेरणा प्राप्त करता है। जबकि क्रिकेट में दोनों पक्षों की कमियों और विशेषताओं का समान रूप से उल्लेख किया जाता है।

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