आओ मिलकर बचाएँ कविता की व्याख्या, प्रश्न उत्तर, भावार्थ, सार, आरोह क्लास 11

आओ मिलकर बचाएँ कविता की व्याख्या या भावार्थ और प्रश्न उत्तर  कक्षा ११


अपनी बस्तियों को
नंगी होने से
शहर की आबो-हवा से बचाएँ उसे

बचाएँ डूबने से
पूरी की पूरी बस्ती को
हड़िया में

अपने चेहरे पर
सन्थाल परगना की माटी का रंग
भाषा में झारखंडीपन

ठंडी होती दिनचर्या में
जीवन की गर्माहट
मन का हरापन
भोलापन दिल का
अक्खड़पन, जुझारूपन भी

भीतर की आग
धनुष की डोरी
तीर का नुकीलापन
कुल्हाड़ी की धार
जंगल की ताजा हवा
नदियों की निर्मलता
पहाड़ों का मौन
गीतों की धुन
मिट्टी का सोंधापन
फसलों की लहलहाहट

आओ मिलकर बचाएँ कविता का प्रसंग – प्रस्तुत काव्य पंक्तियाँ कवयित्री निर्मला पुतुल द्वारा रचित कविता ‘आओ, मिलकर बचाएँ’ नामक कविता से उद्धृत हैं। इस कविता का संथाली भाषा से हिंदी रूपांतर अशोक सिंह ने किया है। प्रकृति के विस्थापन और विनाश के कारण आदिवासी जातियों पर संकट मँडराने लगा है। स्वस्थ सामाजिक-प्राकृतिक परिवेश को बचाने के लिए समाज की कई महत्त्वपूर्ण वस्तुओं को बचाना अनिवार्य है। उन्हीं वस्तुओं का उल्लेख करते हुए कवयित्री ने कहा है कि

आओ मिलकर बचाएँ कविता का भावार्थ  – सामाजिक और प्राकृतिक रूप से हम आदिवासियों की बस्तियाँ नग्न होती जा रही हैं। शहरों की जलवायु का बस्तियों पर प्रभाव पड़नेलगा है। उस शहरी वातावरण से इन्हें बचाना होगा। कुरीतियों के पात्र में डूबने से पूरी बस्ती को बचाना होगा। हमारे चेहरे पर संथाल परगने कीजो मिट्टी सुशोभित हो रही है, हमारी भाषा में जो झारखंड प्रांत में बोली जाने वाली भाषा का प्रभाव है, प्रतिदिन के जीवन में निरंतर घटती उत्सुकता, मानसिक सुख, सरलता और सादगी, स्वभाव में तनने की भाव, संघर्ष करने की प्रवृत्ति, जोश, अपने परंपरागत शस्त्रों की धार एवं तीक्ष्णता, स्वच्छ एवं शुद्ध हवा, नदियों के निर्मल जल, पर्वतों की शांति, गीतों की मनमोहक धुन, मिट्टी की सुगंध और खेतों में लहलहाती फसलों की हमें रक्षा करनी है।

आओ मिलकर बचाएँ कविता का विशेष – यहाँ कवयित्री ने बदलती परिस्थितियों पर चिंता व्यक्त की है। वर्तमान परिवेश का यथार्थ चित्रण किया है। ‘झारखंडीपन’ से अभिप्राय झारखंड क्षेत्र की बोली अभिव्यक्ति की गई है। अपनी सभ्यता और परंपरा की रक्षा पर बल दिया गया है।

नाचने के लिए खुला आँगन
गाने के लिए गीत
हँसने के लिए थोड़ी-सी खिलखिलाहट
रोने के लिए मुट्ठी भी एकान्त

बच्चों के लिए मैदान
पशुओं के लिए हरी-भरी घास
बूढ़ों के लिए पहाड़ों की शान्ति

और इस अविश्वास – भरे दौर में
थोड़ा-सा विश्वास
थोड़ी-सी उम्मीद
थोड़े-से सपने

आओ मिलकर बचाएँ
कि इस दौर में भी बचाने को
बहुत कुछ बचा है,
अब भी हमारे पास !

आओ मिलकर बचाएँ कविता का प्रसंग – स्वस्थ सामाजिक- प्राकृतिक परिवेश के लिए समाज की आवश्यक चीज़ों की रक्षा पर बल देते हुए कवयित्री कहती है कि

आओ मिलकर बचाएँ कविता की व्याख्या – बदलते परिवेश और आधुनिकता की दौड़ में नाचने व खुशियाँ मनाने के लिए खुले आँगन की, लोकगीतों की, खिलखिलाहट भरी हँसी की, ऐसे एकांत की जहाँ अपने दुख के भाव रोकर व्यक्त किए जा सकें, बच्चों के लिए खेलने-कूदने का मैदान, पशुओं के लिए घास के मैदान, बड़े-बुजुगों के लिए पहाड़ों की शांति की तथा आज के अविश्वास से युक्त समय में विश्वास, आशा और भविष्य के सपनों की हम सब मिलकर रक्षा करें। वर्तमान समय में भी बहुत कुछ ऐसा बचा हुआ है जो हमारे लिए उपयोगी है। आओ, हम सब मिलकर उन सबकी रक्षा करें।

आओ मिलकर बचाएँ का विशेष – यहाँ कवयित्री ने सुख-दुख की अभिव्यक्ति के लिए उपयोगी साधनों को करने का आह्वान किया है।

आओ मिलकर बचाएँ कविता का प्रश्न उत्तर 


1- माटी का रंग प्रयोग करते हुए किस बात की ओर संकेत किया गया है?

उत्तर– माटी का रंग प्रयोग करते हुए संथाल क्षेत्र विशेष की जलवायु की ओर संकेत किया गया है।

2- भाषा में झारखंडीपन से क्या अभिप्राय है?

उत्तर– भाषा में झारखंडीपन से अभिप्राय है- भाषा पर झारखंड प्रांत विशेष में बोली जाने वाली भाषा का प्रभाव होना।

3- दिल के भोलेपन के साथ-साथ अक्खड़पन और जुझारूपन को भी बचाने की आवश्यकता पर क्यों बल दिया गया है?

उत्तर– दिल के भोलेपन के साथ-साथ अक्खड़पन और जुझारूपन को बचाने की आवश्यकता पर बल इसलिए दिया गया है क्योंकि अक्खड़ और संघर्षशील व्यक्ति ही अपने समाज की सभ्यता और संस्कृति की रक्षा के लिए संघर्ष कर सकते हैं।

4- प्रस्तुत कविता आदिवासी समाज की किन बुराइयों की ओर संकेत करती है?

उत्तर– प्रस्तुत कविता आदिवासी समाज की कड़ी मेहनत के बावजूद खराब दशा, कुरीतियों से बिगड़ते बच्चे, थोड़े से लालच में आकर बड़ा समझौता करने, शिक्षित समाज का प्रभावी लोगों के अधीन होना, अशिक्षा, शराब जैसी बुराइयों की ओर संकेत करती है।

5- इस दौर में भी बचाने को बहुत कुछ बचा है- से क्या आशय है?

उत्तर– ‘इस दौर में भी बचाने को बहुत कुछ बचा है’ से आशय ऐसी वस्तुओं से है जो सामाजिक – प्राकृतिक परिवेश को स्वस्थ बनाए रखने मेंमहत्त्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं। समाज की सादगी, भोलापन, प्रकृति से लगाव और कठोर परिश्रम की

6- भावना को बचाना चाहिए। निम्नलिखित पंक्तियों के काव्य-सौंदर्य को उद्घाटित कीजिए


(क) ठंडी होती दिनचर्या में
      जीवन की गर्माहट

(ख) थोड़ा-सा विश्वास
       थोड़ी-सी उम्मीद
      थोड़े-से सपने
      आओ मिलकर बजाएँ।

उत्तर

(क) काव्य सौंदर्य

जीवन के प्रति बढ़ती उदासीनता की जगह जीवन को भली-भाँति जीने की इच्छा-शक्ति का संचार करना।

क- ‘ठंडी होती दिनचर्या’ जीवन उदासीनता का प्रतीक है।
ख- जीवन की गर्माहट’ जीवन को उत्सुकता पूर्ण जीने का प्रतीक है।
ग- प्रतीकात्मक भाषा का प्रयोग किया गया है।

(ख) काव्य-सौंदर्य

क- यहाँ कवयित्री ने वर्तमान समय में विश्वास, आशा और जीवन के सपने बचाने की बात कही है।
ख- ‘थोड़ा’ शब्द की विभिन्न रूपों में आकृति से काव्य में विशेष चमत्कार उत्पन्न हुआ है।

7. बस्तियों को शहर की किस आबो-हवा से बचाने की आवश्यकता है?

उत्तर– बस्तियों को शहर में फैलने वाले नग्न एवं बुराइयों से युक्त वातावरण से बचाने की आवश्यकता है।

आओ मिलकर बचाएँ कविता के आस-पास


1- आप अपने शहर या बस्ती की किन चीजों को बचाना चाहेंगे?

उत्तर– सबसे पहले हम अपने शरीर ही उन चीज़ों को बचाना चाहेंगे जो उसके सौंदर्यकरण में सहायक हैं। शहर के सामाजिक वातावरण को पाश्चात्य सभ्यता के दुष्प्रभावों से बचाएँगे। वहाँ की सभ्यता और संस्कृति की रक्षा करेंगे। हरियाली, प्राकृतिक और ऐतिहासिक स्थानों का उचित रख-रखाव करेंगे।

2- आदिवासी समाज की वर्तमान स्थिति पर टिप्पणी करें।

उत्तर– वर्तमान में आदिवासी समाज में काफी परिवर्तन आ गया है। शहरों में पाए जाने वाले लगभग सभी सुख-साधन इस प्रकार की बस्तियों में पाए जाते हैं।

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