यह दंतुरित मुसकानऔर फसल का सारांश, भावार्थ व व्याख्या, प्रश्न उत्तर,अन्य महत्वपूर्ण प्रश्न

यह दंतुरित मुसकानऔर फसल का सारांश, भावार्थ व व्याख्या, प्रश्न उत्तर,अन्य महत्वपूर्ण प्रश्न

इस पोस्ट में हमलोग यह दंतुरित मुसकान कविता के सारांश, यह दंतुरित मुसकान कविता का भावार्थ व व्याख्या, यह दंतुरित मुसकान कविता के प्रश्न उत्तर, यह दंतुरित मुसकान कविता के अन्य महत्त्वपूर्ण प्रश्न, फसल कविता का सारांश, फसल कविता का भावार्थ व व्याख्या, फसल कविता का प्रश्न उत्तर, फसल कविता के अन्य महत्त्वपूर्ण प्रश्न, फसल के अभ्यास प्रश्न का अध्ययन करेंगे| क्लास 10 यह दंतुरित मुसकान और फसल 

यह दंतुरित मुसकान का सारांश 

यह दंतुरित मुसकान कविता नागार्जुन द्वारा लिखी गई है| कवि लंबे प्रवास के बाद घर लौटा है| घर पर अपने छोटे बच्चे के सौंदर्य को देखकर आनंदित हो गया है| बच्चा जब कवि को देखता है तो आगे निकले हुए छोटे-छोटे दांतों से हंसने लगता है| बच्चे की मुसकान को देखकर कवि कहता है कि तुम्हारी यह दंतुरित मुसकान मृतक व्यक्ति में भी जान डाल सकती है अर्थात तुम्हारी मुसकान को देखकर दुखी व्यक्ति आनंद का अनुभव करने लगेगा| जिसने इस बच्चे को जन्म दिया कवि उस बच्चे की माँ अर्थात अपनी पत्नी को धन्य बताता है| इस कविता में बाल सौंदर्य के साथ-साथ एक माँ के विशाल हृदय व व्यक्तित्व का चित्रण किया गया है| 

यह दंतुरित मुसकान कविता का भावार्थ व व्याख्या  


तुम्हारी यह दंतुरित मुसकान
मृतक में भी डाल देगी जान
धूलि-धूसर तुम्हारे ये गात…

छोड़कर तालाब मेरी झोपड़ी में खिल रहे जलजात
परस पाकर तुम्हारा ही प्राण,
पिघलकर जल बन गया होगा कठिन पाषाण

छू गया तुमसे कि झरने लग पड़े शेफालिका के फूल
बाँस था कि बबूल?
तुम मुझे पाए नहीं पहचान?
देखते ही रहोगे अनिमेष!
थक गए हो?
आँख लूँ मैं फेर?
क्या हुआ यदि हो सके परिचित न पहली बार?
यदि तुम्हारी माँ न माध्यम बनी होती आज
मैं न सकता देख
मैं न पाता जान
तुम्हारी यह दंतुरित मुसकान
धन्य तुम, माँ भी तुम्हारी धन्य!
चिर प्रवासी मैं इतर, अन्य!

इस अतिथि से प्रिय तुम्हारा क्या रहा संपर्क
उँगलियाँ माँ की कराती रही हैं मधुपर्क
देखते तुम इधर कनखी मार
और होती जब कि आँखें चार
तब तुम्हारी दंतुरित मुसकान
मुझे लगती बड़ी ही छविमान!

यह दंतुरित मुसकान का प्रसंग प्रस्तुत पद्यांश कवि नागार्जुन द्वारा रचित कविता ‘यह दंतुरित मुसकान’ से उद्धृत है। कवि ने छोटे बच्चे की मनोहारी मुसकान देखकर मन में उठने वाले भावों को अनेक बिम्बों के माध्यम से प्रकट किया है। कवि ने बच्चे की सुंदरता में ही जीवन का संदेश देते हुए कहा है कि-

यह दन्तुरित मुस्कान कविता का भावार्थ व व्याख्या- बच्चों के नये-नये दाँतों की मधुर मुसकान को देखकर मरे हुए व्यक्ति के शरीर में भी प्राणों का संचार हो जाता है। छोटे बच्चों की नये-नये दाँतों की मनोहारी मुसकान को देखकर मुर्दा भी जीवित हो जाएगा। तुम्हारे धूल-मिट्टी से सने अंग-प्रत्यं इतने आकर्षक और मनमोहक लग रहे हैं मानो कमल तालाब को छोड़कर मेरी झोपड़ी में खिल रहे हो। तुम्हारा कोमल स्पर्श पाकर मन इस तरह भावुक हो जाता है जैसे उनके स्पर्श मात्र से कटा पत्थर पिघलकर पानी बन गया है। पता नहीं बांस या बबूल का पेड़ था तुम्हारे स्पर्शमात्र से उससे शेफालिका के सुंदर और सुंगधित फूल झरने लगे। तुम्हारे स्पर्श मात्र से मेरे जीवन में सुख और आनंद का संचार हो गया। तुम मुझे पहचान नहीं पाए। तुम मुझे कब तक यों अपलक देखते रहोगे? क्या तुम मुझे देखते-देखते थक गए हो? फिर भी तुम मुझे पहचान नहीं पा रहे हो, क्या मैं अपने चेहरे को दूसरी दिशा में फेर लूँ ?

क्या हुआ यदि तुम मुझे पहली भेंट में पहचान नहीं पाए? यदि आज भी तुम्हारी माँ हमारी बीच न आती तो मैं तुम्हारे नये-नये दांतों की मोहक मुसकान को न तो देख पाता और न ही जान पाता। माँ को पहचान कर बच्चा मुसकरा देता है।

हे बालक! तुम धन्य हो। तुम्हें जन्म देने वाली तुम्हारी माँ भी धन्य हैं मैं तो कोई दूसरा ही हूँ और बहुत दूर से यहाँ आया हूँ। मैं तुम्हारे लिए अपरिचित हूँ। अरे प्रिय बच्चे! तुम्हारा इस मेहमान से कोई संबंध नहीं है। हमारी आपस में कोई जान पहचान नहीं है। जबकि तुम्हारी माँ का आत्मीयता की मिठास से युक्त प्यार तुम्हारे जन्म से तुम्हें मिलता आया है। जब तुम तिरछी नजरों से मेरी तरफ देखते हो और जब हमारी आँख आपस में मिलती है तब नये उगते हुए तुम्हारे दाँतों की मुसकान मुझे बहुत ही सुंदर लगती है।

फसल कविता का सारांश 

फसल कविता नागार्जुन द्वारा लिखी गयी है| इस कविता में कवि ने फसल होने के पीछे लगने वाले जड़-चेतन के योगदान का चित्रण किया है| कवि कहता है जिस फसल को हम खाते हैं उसको पैदा होने में किसी एक का नहीं, किसी दो का नहीं ढेर सारे लोगों का योगदान होता है| ढेर सारे लोगों में कवि ने नदियों, झरनों, मिट्टियों, करोड़ों हाथों आदि का चित्रण किया है| 

फसल कविता का भावार्थ व व्याख्या 


एक के नहीं,
दो के नहीं,
ढेर सारी नदियों के पानी का जादू :
एक के नहीं,
दो के नहीं,
लाख-लाख कोटि-कोटि हाथों के स्पर्श की गरिमा
एक की नहीं,
दो की नहीं,
हजार-हजार खेतों की मिट्टी का गुण धर्म:

फसल क्या है?
और तो कुछ नहीं है वह
नदियों के पानी का जादू है वह
हाथों के स्पर्श की महिमा है
भूरी-काली-संदली मिट्टी का गुण धर्म है
रूपांतर है सूरज की किरणों का
सिमटा हुआ संकोच है हवा की थिरकन का!


प्रसंग
– प्रस्तुत पद्यांश कवि नागार्जुन द्वारा रचित कविता ‘फसल’ से उद्धृत है। यहाँ कवि ने फसल के बारे में बताना चाहा है कि फसल अनेक नदियों, लोगों के परिश्रम, खेतों की विभिन्न प्रकार की मिट्टियों का परिणाम है।

फसल का भावार्थ(सारांश)– कवि ने बताया है कि फसल अपने आप उत्पन्न नहीं होती है। हमारे दश में एक-दो नहीं अपित अनेक नदियाँ बहती हैं। उन नदियों के जल से फसलों को सींचा जाता है। फसलों को उपजाने के लिए एक-दो नहीं अपितु लाख-लाख, करोड़-करोड़ लोग दिन-रात परिश्रम करते रहते हैं फसल अनगिनत किसानों और मजदूरी के परिश्रम का फल है। फसल केवल एक या दो नहीं बल्कि अनेक खेतों की मिट्टी का गुण-धर्म है। फसल मिट्टी की उपजाऊ शक्ति पर आधारित है। इस प्रकार फसल स्वयं उत्पन्न न होकर नदियों के जल, किसानों के परिश्रम और खेतों की अनेक प्रकार की मिट्टियों का परिणाम होती है।

कवि ने प्रश्न किया कि फसल क्या है? इस प्रश्न का उत्तर देते हुए कवि स्वयं कहता है कि फसल स्वयं उत्पन्न होने वाली कोई विशेष वस्तु नहीं है। इसके निर्माण में अनेक तत्व सहायक हैं। फसल पर विभिन्न नदियों के अमृततुल्य जल का प्रभाव पड़ता है, अनेक किसान-मजदूरों के दिन-रात अथक परिश्रम का फल है। अनेक प्रकार की भूरी, काली, चंदन जैसी मिट्टियों की उर्वरता का प्रभाव है, सूर्य के प्रकाश और हवाओं के बहाव का भी फसलों के निर्माण में विशेष योगदान है। ये सभी तत्व फसल निर्माण में सहायक बनते हैं। अत: मानव श्रम के साथ पंचमहाभूतों (क्षिति, जल, गगन, पावक, समीर) का भी फसल के निर्माण में विशिष्ट योगदान होता है।

यह दंतुरित मुसकान का प्रश्न उत्त्तर   

1- यह दंतुरित मुसकान का कवि के मन पर क्या प्रभाव पड़ता है?

उत्तर– बच्चे की दंतुरित मुसकान पर कवि मोहित हो जाता है। उसकी निर्मल मुसकान देखकर कवि को लगा कि तालाब में खिलने वाले कमल उसके झोपड़े में खिल रहे हैं। इस सुंदरता की व्याप्ति ऐसी है कि पत्थर हृदय भी पिचल जाए।

2. बच्चे की मुसकान और एक बड़े व्यक्ति की मुसकान में क्या अंतर है?

उत्तर– बच्चे की मुसकान अबोध होती है। वह इन बातों से अनभिज्ञ होता है कि कैसी बातों पर मुसकराना चाहिए। कब और किस तरह अपनी मुसकान बिखेरनी चाहिए। वह तो अपनी दंतुरित मुसकान से दूसरों के मन में अपने प्रति आकर्षण का भाव उत्पन्न कर लेता है। बड़ा व्यक्ति परिपक्व होता है। वह समय और परिस्थितियों के अनुसार मुसकराता है या अपनी मुसकराहट पर नियंत्रण कर लेता है। फिर उसके दाँत भी बच्चे की अपेक्षा काफी बढ़ चुके होते हैं। बड़ों की मुस्कान में अधिकतर स्वार्थ का भाव छिपा होता है।

3. कवि ने बच्चे की मुसकान के सौंदर्य को किन-किन बिंबों के माध्यम से व्यक्त किया है?

उत्तर– कवि ने बच्चे की मुस्कान के सौंदर्य को निम्नलिखित बिम्बों के माध्यम से प्रकट किया है ।
*कमल का तालाब छोड़कर झोपड़ी में खिलना।
*बांस या बबूल से शेफालिका के फूलों का झरना। *अपलक पहचानने के लिए देखते रहना।
*तिरछी नज़रों से देखना और आँखें मिलने पर मुस्कराना।

4- भाव स्पष्ट कीजिए

(क) छोड़कर तालाब मेरी झोंपड़ी में खिल रहे जलजात

उत्तर– यहाँ कवि का कहना है कि गाँवों में धूल-मिट्टी से सने अंग-प्रत्यंग वाले बच्चे अपने कच्चे घरों में खेलते हुए इतने आकर्षक और मनोहर लगते हैं जैसे कमल के फूल तालाब की अपेक्षा वहीँ पर खिल गए हों।

(ख) छू गया तुमसे कि झरने लग पड़े शेफालिका के फूल बांस था कि बबूल?

उत्तर– कवि ने यहाँ कहना चाहा है कि बच्चों की दंतुरित मुसकान नैसर्गिक होती है। जब वह हृदय को छू जाती है तो भावहीन और संवेदनाशून्य व्यक्ति में सुख और आनंद की लहर दौड़ जाती है।

यह दंतुरित मुसकान कविता की  रचना और अभिव्यक्ति

5. मुसकान और क्रोध भिन्न-भिन्न भाव हैं। इनकी उपस्थिति से बने वातावरण की भिन्नता का चित्रण कीजिए। है।

उत्तर– मुसकान से किसी व्यक्ति की प्रसन्नता व्यक्त होती है। मुसकराने वाला स्वयं तो खुश होता ही है, अपनी मुसकान से दूसरों व्यक्ति की प्रसन्नता व्यक्त होती को भी प्रसन्न कर देता है। इससे वातावरण बोझिल होने से बच जाता है।

दूसरी ओर क्रोध हमारे मन की व्यग्रता, आक्रोश और अप्रसन्नता का भाव प्रकट करता है। क्रोध की अधिकता में हम अपना नियंत्रण खो बैठते हैं और मनसा, वाचा, कर्मणा दुर्व्यवहार करने लगते हैं। इससे वातावरण से शांति खो जाती है और वातावरण में कटुता घुल जाती है।

6. दंतुरित मुसकान से बच्चे की उम्र का अनुमान लगाइए और तर्क सहित उत्तर दीजिए।

उत्तर– यह दंतुरित मुस्कान कविता में वर्णित शिशु के क्रियाकलापों से यह अनुमान लगता है कि उसकी उम्र पाँच-छह महीने होगी क्योंकि इसी उम्र में बच्चे अपरिचित को पहचानने का प्रयास करते हैं तथा उनके दाँत निकलने शुरू हो जाते हैं।

7. बच्चे से कवि की मुलाकात का जो शब्द-चित्र उपस्थित हुआ है उसे अपने शब्दों में लिखिए।

उत्तर– प्रवास से काफी दिनों बाद लौटकर आए कवि की मुलाकात जब शिशु से होती है तो वह शिशु की मुसकान देखकर मुग्ध हो जाता है। उसकी दंतुरित मुसकान देखकर कवि की निराशा और उदासी गायब हो गई। उसे लगा कि उसकी झोपड़ी में कमल खिल उठे हों। शिशु का स्पर्श पाते ही कवि का हृदय वात्सल्य भाव से भर उठा। इससे कवि के मन की खुशी उसके चेहरे पर चमक उठी। पहचान न पाने के कारण शिशु कवि को अपलक निहारता रहा। कवि सोचता है कि यदि उसकी माँ माध्यम न बनती तो वह यह मुसकान देखने से वंचित रह जाता। इसी बीच जब शिशु ने तिरछी नज़र से कवि को देखा तो नन्हें-नन्हें दाँतों वाली यह मुस्कान कवि को और भी सुंदर लगने लगी।

फसल कविता का प्रश्न और उत्तर 

1- कवि के अनुसार फसल क्या है?

उत्तर–  नागार्जुन ने फसल को अगिनत किसानों-मजदूरों के परिश्रम के साथ-साथ पंचमहाभूतों के योगदान का परिणाम बताया है।

2- कविता में फसल उपजाने के लिए आवश्यक तत्वों की बात कही गई है। वे आवश्यक तत्व कौन-कौन से हैं?

उत्तर– फसल उपजाने के लिए पृथ्वी, पानी, सूर्य, हवा के साथ-साथ मानव श्रम का विशेष योगदान रहता है।

3. फसल को ‘हाथों के स्पर्श की गरिमा’ और ‘महिमा’ कहकर कवि क्या व्यक्त करना चाहता है?

उत्तर– कवि नागार्जुन ने फसल को धरती और मानव-श्रम से जोड़ा है। फसल उत्पन्न करने में मिट्टी, सूर्य, पानी, हवा आदि का योगदान होता है. परंतु किसानों-मजदूरों के दिन-रात परिश्रम के बिना फसलें पैदा नहीं हो सकती है। फसलों के निर्माण में एक-दो नहीं अपितु लाखों-करोड़ किसान-मजदूर लगे रहते हैं। उनकी मेहनत के बल पर ही फसल उत्पन्न होती हैं. विकसित होती है। ऐसा कहकर कवि किसानों-मजदूरों के प्रति अपना लगाव व्यक्त किया है।

4- भाव स्पष्ट कीजिए

(क) रुपांतर है सूरज की किरणों का
सिमटा हुआ संकोच है हवा की थिरकन का!

उत्तर- कवि नागार्जुन ने ‘फसल’ कविता में फसल की उत्पत्ति को अनेक तत्वों का समन्वित रूप बताया है। इनमें सूर्य और हवा का मुख्य स्थान है। सूर्य की किरणें ऊर्जा के रूप में फसलों में स्थानान्तरित होती है। हवा भी फसलों को जीवन प्रदान करती है। हवा का सिमटा हुआ रूप लहलहाती फसलों में देखने का मिलता है।

फसल कविता की रचना और अभिव्यक्ति

5- कवि ने फसल को हज़ार-हज़ार खेतों की मिट्टी का गुण-धर्म कहा है

(क) मिट्टी के गुण-धर्म को आप किस तरह परिभाषित करेंगे?

उत्तर– अनेक खेतों में विभिन्न प्रकार की मिट्टियाँ होती हैं। ये मिट्टियाँ अपनी उर्वरा शक्ति के गुण के आधार पर फसलों को उत्पन्न करती हैं।

(ख) वर्तमान जीवन शैली मिट्टी के गुण-धर्म को किस-किस तरह प्रभावित करती है?

उत्तर– वर्तमान जीवन शैली में अधिक फसल प्राप्त करने के लिए अत्यधिक मात्रा में उर्वरकों का प्रयोग किया जा रहा है। परिणाम स्वरूप मिट्टी के गुण धर्म में निरंतर गिरावट आती जा रही है।

(ग) मिट्टी द्वारा अपना गुण-धर्म छोड़ने की स्थिति में क्या किसी भी प्रकार के जीवन की कल्पना की जा सकती है।

उत्तर– मिट्टी द्वारा अपना गुण-धर्म छोड़ दिए जाने पर किसी भी प्रकार के जीवन की कन्पना नही की जा सकती है। क्योंकि पृथ्वी पर जब कुछ उत्पन्न ही नहीं होगा तो पृथ्वी पर रहने वाले प्राणो,जीव-जन्तु अपना भरण-पोषण कैसे कर पाएंगे? इसके लिए मिट्टी का अपना गण-धर्म बने रहना अनिवार्य है।

(घ) मिट्टी के गुण-धर्म को पोषित करने में हमारी क्या भूमिका हो सकती है?

उत्तर– मिट्टी के गुण-धर्म को पोषित करने में हम अनेक तरह से सहायक बन सकते हैं। फसल चक्र के माध्यम से हम मिट्टी के गुण-धर्म को बनाए रख सकते हैं. उर्वरकों का कम मात्रा में इस्तेमाल करके और अधिक मात्रा में पेड़-पौधे लगाकर मिट्टी के गुण धर्म का पोषण कर सकते है।

🎦यह दंतुरित मुसकान और फसल कविता का फ्री विडियो
👉कक्षा 10 हिंदी के सभी पाठों की विस्तृत व्याख्या, प्रश्नोत्तर 
👉कक्षा 10 हिंदी क्षितिज कृतिका क्विज / एम सी क्यू  
👉 कक्षा 10 हिंदी व्याकरण क्विज 

यह दंतुरित मुसकान और फसल कविता के  परीक्षोपयोगी अन्य महत्त्वपूर्ण प्रश्न

प्रश्न– फसल उगाने में किसानों के योगदान को अपने शब्दों में लिखिए ।

प्रश्न– यह दंतुरित मुस्कान कविता में कवि ने किन्हे धन्य कहा है?

प्रश्न– कवि शिशु की ओर से आंखें क्यों फेर लेना चाहता है?

प्रश्न– शिशु के धूल लगे शरीर को देखकर कवि को कैसा लगा?

प्रश्न– ‘मृतक में भी डाल देगी जान’ पंक्ति का आशय स्पष्ट कीजिए।

प्रश्न– कवि किसे अनिमेष देखे जा रहा था और क्यों?

प्रश्न– ‘चिर प्रवासी मैं इतर, मैं अन्य’ कवि ने ऐसा क्यों कहा है?

Related Posts

error: Content is protected !!