सूरदास के पद की व्याख्या व भावार्थ, प्रश्नोत्तर और अन्य महत्त्वपूर्ण प्रश्न कक्षा-10

सूरदास के पद की व्याख्या, प्रश्नोत्तर और अन्य महत्त्वपूर्ण प्रश्न कक्षा-10

सूरदास के पद का सारांश 

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सूरदास के प्रथम पद की व्याख्या व भावार्थ कक्षा 10 

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सूरदास के पद की व्याख्यासूरदास के पद में  गोपियां उधव को संबोधित करते हुए कहती हैं कि हे उधव तुम वास्तव में बहुत भाग्यशाली हो जो प्रेम के बंधन से दूर रहे। तुम्हारा मन किसी के प्रेम में अनुरक्त नहीं है। किसी के प्रति तुम्हारे मन में प्रेम भावना भी जागृत नहीं होती, जिस प्रकार कमल के फूल की पत्तियां जल के पास होते हुए भी उससे ऊपर रहती हैं और जल की एक भी बूंद उन पर नहीं ठहरती और जिस प्रकार तेल की मटकी को जल में भिगोने पर उसके ऊपर जल की एक भी बूंद नहीं ठहरती उसी प्रकार तुम्हारे ऊपर भी कृष्ण के रूपाकर्षण और सौन्दर्य का कोई प्रभाव नहीं पड़ा है। वास्तविकता यह है कि आज तक तुम प्रेम रूपी नदी में उतरे ही नहीं हो, इसलिए न तो तुम प्रेम पारखी हो और न ही प्रेम की भावना जानने वाले हो।

सूरदास जी बताते हैं कि वे गोपियां उधव को कहती है कि हम तो भोली-भाली ग्रामीण अबलाएं हैं और हम श्रीकृष्ण के रूप सौंदर्य में इस प्रकार खो गए हैं कि अब उनस विमुख नहीं हो सकती। हमारी स्थिति उन चीटियों के समान है जो गुड़ के प्रति आकर्षित होकर उस से चिपट तो जाती है किंतु बाद में स्वयं को न छुड़ा पाने के कारण वही अपने प्राण त्याग देती है।

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सूरदास के पद की व्याख्या हे उधव कृष्ण से मिलन की अभिलाषा हमारे मन में ही रह गई। हमें यह आशा थी कि शीघ्र ही कृष्ण के दर्शन हो जाएंगे हम चाहती थी कि जिन बातों को न कहना पड़े, उन बातों को अब हम किससे कहें हम अपने मन की बातें केवल कृष्ण को बताना चाहती थी लेकिन उनके न आने पर अब हम किसके सामने अपनी इच्छाएं व्यक्त करें। हर पल कृष्ण के आने की उम्मीद बनी हुई थी इसलिए शरीर और मन हर प्रकार की व्यथा को सहन कर रही थी। हमारा समय इसी आशा के सहारे व्यतीत हो रहा था कि कृष्ण से भेंट होगी, अब तुम्हारे द्वारा योग ज्ञान के इस संदेश को सुनकर हम कृष्ण के वियोग की आग में जलने लगी है। जिधर से हम विरह की आग से रक्षा करने के लिए पुकार लगाना चाहती थी उधर से ही यह प्रचंड अग्नि की धारा प्रवाहित हो रही है। हम कृष्ण के विरह में व्याकुल होकर उनसे मिलने को व्याकुल है और वह है कि ज्ञान योग का संदेश भेज कर हमें विरह की अग्नि में जला रहे हैं|

सूरदास जी बताते हैं कि गोपियां कहती हैं कि अब हम धैर्य क्यों धारण करें, जब कृष्ण ने ही अपनी मर्यादा नहीं रखी, अब हमारे धैर्य का बांध टूटने के कगार पर है।

सूरदास के तीसरे पद की व्याख्या व भावार्थ कक्षा 10 

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सूरदास के पद की व्याख्या  हे उधव श्री कृष्ण हमारे लिए हारिल पक्षी की लकड़ी के समान हैं जिस प्रकार हारिल पक्षी अपने पंजों में कोई लकड़ी या तिनका पकड़े रहता है और उस को आधार मानकर आकाश में उड़ता है ठीक उसी प्रकार गोपियां कहती हैं कि हमने मन, वचन और कर्म से नंद बाबा की बेटे को दृढ़तापूर्वक हृदय से पकड़ लिया है। हम जागती, सोती और स्वप्न में दिन-रात अपने मन में कृष्ण की ही रट लगाएं रहती हैं। उन्होंने कृष्ण के प्रति एक कनिष्ठ प्रेम व्यक्त किया है। हे उधव तुम्हारे योग की बातें सुनकर ऐसा लगता है जैसे कड़वी ककड़ी खा ली हो अर्थात तुम्हारे निर्गुण उपासना का ज्ञान ककड़ी की भांती अग्राह्य है। तुम तो हमारे लिए ऐसा रोग ले आए हो जिसको न कभी देखा, न कभी सुना और न कभी उसका भोग किया।

सूरदास जी कहते हैं कि गोपियों ने उद्धव से कहा कि यह निर्गुण ज्ञान का योग उनके लिए है जिनका मन चकई के समान चंचल और अस्थिर है।

सूरदास के चौथे पद की व्याख्या व भावार्थ कक्षा 10 

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सूरदास के पद की व्याख्या हे सखी अब कृष्ण राजनीति शास्त्र में पूर्ण दक्ष हो गए हैं। वे पूर्ण राजनीतिज्ञ बन गए हैं। वह प्रेम संबंधी बातों में भी कपट और छल से काम ले रहे हैं। भ्रमर रूपी उद्धव ने जो ज्ञान योग से संबंधित बातें बताई हैं क्या वे तुम्हारी समझ में आई है ? इन बातों से कृष्ण का कोई समाचार जान पाई? हे कृष्ण तुम पहले से ही बहुत चालाक थे जिन्होंने हम सबको अपने  प्रेम जाल में फंसा लिया और हमें यहां तड़पता छोड़ स्वयं मथुरा चले गए। उन्होंने अपनी विशाल बुद्धि एवं विवेक का परिचय देते हुए हम नारियों को योग उपासना का संदेश भेजा है। वस्तुतः यह उनकी मूढ़ता है जो हम युवतियों को योग का संदेश भेजा है।

हे सखी पहले समय में यहां के लोग बहुत ही सज्जन हुआ करते थे जो दूसरों की भलाई के कार्य करते हुए इधर-उधर भागदौड़ करते फिरते थे। दूसरी तरफ उधव है जो हम अबला को सताने के लिए यहां भागे चले आएं। हम तो कृष्ण से इतना भर चाहते हैं कि मथुरा जाते समय वह हमारा मन जिसे चुपचाप चुरा कर ले गए थे उसे लौटा दे किंतु उनसे ऐसे अनीतिपूर्ण कार्य की आशा नहीं है, जो दूसरों की परंपराओं और रिति को निभाने में लगे हुए हैं। वह स्वयं क्यों नहीं न्यायपूर्ण आचरण कर रहे हैं। अंत में सूरदास जी के अनुसार गोपियां कहती है कि राजा या शासक का यह धर्म है कि उसकी प्रजा पर कोई अत्याचार न हो उसे किसी भी तरह से दुखी न किया जाए।

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सूरदास के पद का पद का प्रश्न उत्तर  

-1: गोपियों द्वारा उद्धव को भाग्यवान कहने में क्या व्यंग्य निहित है?

उत्तर- गोपियों द्वारा उधव को भाग्यवान कहने में निहित व्यंग्य यह है कि वे उधव को बड़भागी कहकर उन्हें अभाग्यशाली होने की ओर संकेत करती हैं। वे कहना चाहती हैं कि उधव तुम श्रीकृष्ण के निकट रहकर भी उनके प्रेम से वंचित हो और इतनी निकटता के बाद भी तुम्हारे मन में श्रीकृष्ण के प्रति अनुराग नहीं पैदा हो सका। ऐसा तो तुम जैसे भाग्यवान के ही हो सकता है जो इतना निष्ठुर और पाषाण हृदय होगा अर्थात गोपियां कहना चाहती हैं कि उधव तुम जैसा अभागा शायद ही दूसरा कोई हो।

प्रश्न-2: उधव के व्यवहार की तुलना किस-किस से की गई है?

उत्तर-: उधव के व्यवहार की तुलना दो वस्तुओं से की गई –

  • कमल के पत्ते से जो पानी में रहकर भी गीला नहीं होता है।
  • पानी में डूबी गागर से जो तेल के कारण पानी से गीली नहीं होती है।

प्रश्न-3: गोपियों ने किन-किन उदाहरणों के माध्यम से उधव को उलाहने दिए हैं?

उत्तर-: गोपियों ने निम्नलिखित उदाहरणों के माध्यम से उधव को उलाहने दिए |

  • उधव तुमने प्रीति नदी में कभी पैर नहीं डुबोया ।
  • तुम कृष्ण के समीप रहकर भी उनके प्रेम से वंचित रह गए।
  • योग संदेश हम जैसों के लिए कड़वी ककड़ी के समान है।
  • हम तुम्हारी तरह नहीं हैं जिन पर कृष्ण के प्रेम का असर न हो।

प्रश्न-4: उधव द्वारा दिए गए योग के संदेश ने गोपियों की विरह आग में घी का काम कैसे किया?

उत्तर-: श्री कृष्ण के मथुरा चले जाने पर गोपियां पहले से विरहाग्नि में जल रही थी। वे श्री कृष्ण के प्रेम संदेश और उनके आने की प्रतीक्षा कर रही थी। ऐसे में श्रीकृष्ण ने उन्हें योग साधना का संदेश भेज दिया जिससे उनकी व्यथा कम होने के वजाय और भी बढ़ गई इस तरह उधव द्वारा दिए गए योग के संदेशों ने गोपियों की विरहाग्नि में घी का काम किया।

प्रश्न-5 -:‘मरजादा न लही’ के माध्यम से कौन सी मर्यादा ना रहने की बात की जा रही है?

उत्तर-: गोपियां श्री कृष्ण से प्रेम करती थी। वे श्रीकृष्ण से भी अपने प्रेम के बदले प्रेम का प्रतिदान चाहती थी । प्रेम के बदले प्रेम का आदान-प्रदान ही मर्यादा है, किंतु श्रीकृष्ण ने प्रेम संदेश के स्थान पर योग संदेश भेजकर मर्यादा का निर्वाह नहीं किया । इसके विपरीत गोपियों ने श्री कृष्ण का प्रेम पाने के लिए सारी मर्यादाओं को एक किनारे रख दिया था ।

प्रश्न-6: कृष्ण के प्रति अपने अनन्य प्रेम को गोपियों ने किस प्रकार अभिव्यक्त किया है?

उत्तर-: गोपियों ने कृष्ण के प्रति अपने अनन्य भक्ति की अभिव्यक्ति निम्नलिखित रूपों में करती – 

  •  वे अपनी स्थिति गुड़ से चिपटी चीटियों जैसी पाती है जो किसी भी दशा में कृष्ण प्रेम से दूर नहीं रह सकती हैं।
  •  श्री कृष्ण को हारिल की लकड़ी के समान मानती हैं।
  •  वे श्री कृष्ण के प्रति मन कर्म और वचन से समर्पित हैं।
  •  वे सोते जागते दिन-रात कृष्ण का जाप करती हैं।

प्रश्न-7: गोपियों ने उधव से योग की शिक्षा कैसे लोगों को देने की बात कही है?

उत्तर-: गोपियों ने उद्धव से योग की शिक्षा ऐसे लोगों को देने के लिए कही है जिनका मन चक्र के समान अस्थिर रहता है तथा एक जगह न टिक कर इधर-उधर भटकता रहता है।

प्रश्न-8– प्रस्तुत पदों के आधार पर गोपियों का योग-साधना केे प्रति दृष्टिकोण स्पष्ट करें

उत्तर-: सूरदास द्वारा रचित इन पदों में गोपियों की कृष्ण के प्रति एकनिष्ठ प्रेम, भक्ति, आसक्ति और स्नेहमयता प्रकट हुई है जिस पर किसी अन्य का असर अप्रभावित रह जाता है । गोपियों पर श्री कृष्ण के प्रेम का ऐसा रंग चढ़ा है की खुद कृष्ण का भेजा योग संदेश कड़वी ककड़ी और रोग व्याधि के समान लगता है।

प्रश्न-9- गोपियों के अनुसार राजा का धर्म क्या होना चाहिए?

उत्तर-: गोपियां राज धर्म के बारे में बताती हुई उद्धव से कहती हैं कि राजा का कर्तव्य यही है कि वह अपनी प्रजा की भलाई की बात ही हर समय सोचे उसे अपनी प्रजा को बिलकुल भी नहीं सताना चाहिए ।

प्रश्न-10-गोपियों को कृष्ण में ऐसे कौन से परिवर्तन दिखाई दिए जिनके कारण वे अपना मन वापस पा लेने की बात कहती हैं?

उत्तर-: गोपियों को कृष्ण में ऐसे अनेक परिवर्तन दिखाई दिए जिनके कारण वे अपना मन श्री कृष्ण से वापस पाना चाहती –

  • श्री कृष्ण ने अब राजनीति पढ़ लिया है जिससे उनके व्यवहार में छल कपट आ गया है।
  • श्री कृष्ण को अब प्रेम की मर्यादा पालन का ध्यान नहीं रह गया है।
  •  श्री कृष्ण अब राजधर्म भूलते जा रहे हैं।
  • दूसरों के अत्याचार छुड़ाने वाले श्री कृष्ण अब स्वयं अनीति पर उतर आए हैं। 

प्रश्न-11- गोपियों ने अपने वाक् चातुर्य के आधार पर ज्ञानी उधव को परास्त कर दिया उनके वाक् चातुर्य की विशेषताएं लिखिए?

उत्तर-: गोपियों के वाक चातुर्य की निम्नलिखित विशेषताएं हैं

  •  गोपियां व्यंग्य करने में प्रवीण है उधव को बड़भागी कहकर उन पर करारा व्यंग्य करती है।
  •  गोपियां उधव से अपनी बातें बिना लाग लपेट कह देती हैं।
  •  गोपियां अपनी बातें कहते-कहते भावुक भी हो जाती हैं |
  •  गोपियों की बातों में उपालंभ का भाव निहित है, वे कृष्ण को अनिति करने वाले तक कह देती हैं।

प्रश्न-12-संकलित पदों को ध्यान में रखते हुए सूर के भ्रमरगीत की मुख्य विशेषताएं बताइए?

उत्तर- सूरदास के पदों के आधार पर भ्रमरगीत की कुछ विशेषताएं निम्नलिखित –

  •  सूरदास के भ्रमरगीत में विरह व्यथा का मार्मिक वर्णन है
  •  इस गीत में सगुण ब्रह्म की सराहना है
  •  गोपियों का कृष्ण के प्रति एकनिष्ठ प्रेम का प्रदर्शन है।
  •  उद्धव के ज्ञान पर गोपियों के वाक चातुर्य और प्रेम की विजय का चित्रण है।
  •  पदों में गेयता और संगीतात्मकता का गुण है।

 

सूरदास के पद की रचना और अभिव्यक्ति 

प्रश्न-1: गोपियों ने उद्धव के सामने तरह-तरह के तर्क दिए हैं आप अपनी कल्पना से और तर्क दीजिए।

 विद्यार्थी स्वयं करें

प्रश्न-2: उद्धव ज्ञानी थे, नीति की बातें जानते थे, गोपियों के पास ऐसी कौन सी शक्ति थी जो उनके वाक् चातुर्य में मुखरित हो उठी?

उत्तर-:उधव ज्ञानी थे, नीति की बातें जानते थे परंतु उन्हें व्यावहारिकता का अनुभव नहीं था। गोपियां कृष्ण के प्रति असीम अथाह लगाव रखती थी जबकि उधव को प्रेम जैसी भावना से कोई मतलब ना था। उधव को इस स्थिति में चुप देखकर उनकी वाक चातुर्य और भी मखर हो उठी।

प्रश्न-3: गोपियों ने यह क्यों कहा कि हरि अब राजनीति पढ़ आए हैं?

उत्तर-: ‘हरि अब राजनीति पर आए हैं’ गोपियों ने ऐसा इसलिए कहा क्योंकि कृष्ण ने उनके निश्छल प्रेम के बदले योग संदेश भिजवा कर उनके साथ अन्याय किया है और प्रेम की मर्यादा भंग की है।

सूरदास के पद के अन्य प्रश्न

सूरदास के पद के अन्य महत्त्वपूर्ण प्रश्न

प्रश्न-1:गोपियों ने उधव को बड़भागी क्यों कहा है ?

उत्तर-:गोपियों ने उधव को इसलिए बड़भागी कहा है क्योंकि उधव श्री कृष्ण के प्रेम से दूर हैं उन्हें कृष्ण का प्रेम अपने बंधन में न बांध सका ऐसे में उधव को प्रेम की वैसी पीड़ा नहीं झेलनी पड़ रही है जैसी गोपियां झेलने को विवश हैं ।

प्रश्न-2: ‘गुर चाँटी ज्यों पागी’ कहने से गोपियों की किस मनोदशा की अभिव्यक्ति होती है

उत्तर-:‘गुर चाँटी ज्यों पागी’ से गोपियों का कृष्ण के प्रति एक निष्ठ प्रेम की अभिव्यक्ति का ज्ञान होता है। गोपियों की मनोदशा ठीक वैसी ही है जैसी गुड़ से चिपटी चीटियों की होती है जिस तरह चीटियां किसी भी दशा में गुड़ को नहीं छोड़ना चाहती हैं उसी प्रकार गोपियां भी कृष्ण को नहीं छोड़ना चाहती हैं।

प्रश्न-3: गोपियों ने अपने लिए कृष्ण को हारिल की लकड़ी कहने के समान क्यों बताया है

उत्तर-: गोपियों ने अपने लिए कृष्ण को हारिल की लकड़ी के सामान इसलिए बताया है क्योंकि जिस प्रकार हारील पक्षी अपने पंजे में दबी लकड़ी को आधार मानकर उड़ता है उसी प्रकार गोपियों ने अपने जीवन का आधार कृष्ण को मान रखा है।

प्रश्न-4: ऐसी कौन सी बात थी जिसे गोपियों को अपने मन में दबाए रखने के लिए विवश होना पड़ा

उत्तर-: गोपियां चाहती थी कि श्री कृष्ण के दर्शन करें और अपने प्रेम की अभिव्यक्ति उनसे करें वह इन बातों को उधव से नहीं कर सकती थी यही बात उनके मन में दबी रह गई ।

प्रश्न-5: कमल के पत्ते और तेल लगी गागर की क्या विशेषता होती है

उत्तर-: कमल का पत्ता इतना चिकना होता है कि पानी की बूंद उस पर ठहर नहीं सकती है इसलिए कमल का पत्ता पानी में रहने पर भी गिला नहीं होता है इसी प्रकार तेल लगी गागर को जब पानी में डुबोया जाता है तो उसे भी पानी छु नहीं पाता है और वह सुखी की सुखी रह जाती है । 

प्रश्न-6: गोपियों ने स्वयं को अबला और भोली कहा है। आपकी दृष्टि से उनका ऐसा कहना कितना उपयुक्त है

उत्तर-: गोपियों ने स्वयं को अबला और भोली कहा है पर मेरी दृष्टि में ऐसा नहीं है गोपियां कृष्ण से दूर रहकर भी उनके प्यार में अनुरक्त हैं वे स्वयं को कृष्ण के प्रेम बंधन में बंधी पाती हैं जिसे कृष्ण से इस तरह का प्रेम मिल रहा हो वह अबला और भली नहीं हो सकती है

प्रश्न-7: ‘प्रीति नदी में पाँव न बोरयो’ का आशय स्पष्ट कीजिए। ऐसा किसके लिए कहा गया है?

उत्तर-: ‘प्रीति नदी में पाँव न बोरयों’ का आशय है कि प्रेम रूपी नदी में पैर न डुबाना अर्थात किसी से प्रेम ना करना और प्रेम का महत्व ना समझना ऐसा उधव के लिए कहा गया है जो कृष्ण के पास रहकर भी उनके प्रेम से अछूते बने रहें।

प्रश्न-8: गोपियाँ किस आधार पर विरह व्यथा सह रही थीं

उत्तर-: मथुरा जाते समय श्री कृष्ण ने गोपियों से एक निश्चित समय सीमा की ओर संकेत करके कहा था कि इतने समय के बाद ब्रज वापस आ जाएंगे उसी आने की अवधि को आधार बनाकर गोपियां तन और मन की विरह व्यथा सह रही थी ।

प्रश्न-9: गोपियों को मदद मिलने की आशा कहां लगी थी, पर उनकी यह आशा निराशा में कैसे बदल गई

उत्तर- गोपियां जो विरह व्यथा जी लेने को विवश थी को श्री कृष्ण की ओर दर्शन और प्रेम संदेश के रूप में मदद मिलने की आशा लगी थी पर जब कृष्ण ने ही उद्धव के हाथों योग संदेश भिजवाया तो उनकी यह आशा निराशा में बदल गई ।

प्रश्न-10- गोपियां अब धर्य क्यों रखना चाहती हैं

उत्तर- गोपियों को श्रीकृष्ण की ओर प्रेम के प्रतिदान और शीघ्र आकर दर्शन देने की आशा लगी थी उन्होंने कृष्ण का प्रेम पाने के लिए सामाजिक मर्यादा की परवाह नहीं की इसके विपरीत श्रीकृष्ण ने प्रेम की मर्यादा का निर्वाह नहीं किया इस कारण उधव गोपियों के पास जिस उद्देश्य से आए थे, उसमें सफल नहीं हो सके?और गोपियां धैर्य नहीं धारण करना चाहती हैं ।

प्रश्न-11- उधव गोपियों के पास जिस उद्देश्य से आए थे, उसमें सफल नहीं हो सके?

उत्तर- उद्धव गोपियों के पास ज्ञान और योग साधना का महत्व बताने और उसे अपनाने की सीख देने आए थे परंतु वे इस उद्देश्य में सफल न हो सके क्योंकि उधव को अपने ज्ञान और योग का घमंड सवार था वे गोपियों के आदर्श प्रेम और उनकी मनोदशा समझ पाने में सर्वथा अनभिज्ञ रहे ।

प्रश्न-12- गोपियों ने कृष्ण को राजधर्म की बात क्यों याद दिलाई ?

उत्तर- गोपियों ने कृष्ण को राजधर्म की बात इसलिए याद दिलाई क्योंकि श्री कृष्ण प्रेम में डूबी गोपियों के लिए योग संदेश भेजकर उनके साथ अनीति भरा आचरण कर रहे थे। उनका मानना था कि राजा अपनी प्रजा की भलाई की बात सदैव सोचता है जबकि कृष्ण ऐसा नहीं कर रहे थे ।

यह भी जाने

हारिल- हारिल पीली टांगों वाला हरे रंग का कबूतर की जाति का पक्षी है, जिसे हरियल, हारीत(संस्कृत), कॉमन ग्रीन पिजन (अंग्रेजी) भी कहा जाता है। यह पक्षी भारत में घने पेड़ों वाले क्षेत्रों में पाया जाता है। ‘हारिल की लकड़ी’ संसार में मुहावरे के रूप में प्रचलित है।

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