साना साना हाथ जोड़ि का सारांश/sana sana hath jodi ka saransh class 10

साना साना हाथ जोड़ि पाठ का सार कक्षा 10 sana sana hath jodi ka saransh class 10 

साना साना हाथ जोड़ि पाठ में लखिका लिखती है कि उन्हें सुबह यूमथांग के लिए निकलना था। लोगों ने उसे बताया था कि अगर मौसम साफ हो तो हिमालय की सबसे ऊँची चाटी कंचनजंघा को भी देख सकते हैं। परन्तु मौसम खराब होने की वजह से यह नजारा उन्हें नसीब न हुआ। अचानक लेखिका को सामने ढेर सारे रंग-बिरंगे फूल देखकर लगा कि वह फूलों के बाग में पहुंच गई। यूमथांग गैंगटॉक से 149 कि०मी० की दूरी पर था। ड्राइवर जितेन लेखिका को बताता है कि यूमथांग हिमालय की गहरी घाटियाँ होती हैं जहा फूलों से महकती वादियाँ मिलेंगी। लेखिका उससे बच्ची की तरह उत्साहित हो पूछती है कि क्या वहाँ बर्फ मिलेगी और जितेन उसे कहता कि चलो तो पता चलेगा।

साना साना हाथ जोड़ि पाठ में  लेखिका जगह-जगह पाईन और नुकीले पेड़ों को देखते हुए साथियों के साथ आगे बढ़ रही थी कि उसे एक कतार में श्वेत पताकाएँ दिखाई देती हैं जिन पर मंत्र लिखे हैं। जितेन उसे श्वेत तथा रंगीन पताकाओं के फहराने के अलग-अलग अवसरों के बारे में बताता है। लेखिका की नजर दलाई लामा की तसवीर पर टिक जाती है। थोड़ा आगे बढ़ने पर जितेन कवी-लोग-स्टॉक के बारे में बताता है कि गाइड फिल्म की शूटिंग तथा तिब्बत के चीस-खे बम्सन ने लेपचाओ के शोमेन से कुंजतेक के साथ संधि पत्र पर हस्ताक्षर यहीं पर हुए थे। उन्होंने रास्ते में एक कुटिया के भीतर घूमते चक्र को देखा जिसे जितेन ने पापनाशक बताया। लेखिका सोचती है कि वैज्ञानिक युग आने पर भी लोगों का अंधविश्वास, आस्थाएँ, पाप-पुण्य की अवधारणाएँ हर स्थान पर वैसे ही हैं।

धीरे-धीरे वे बाजार और बस्तियाँ पीछे छोड़ते हुए बढ़ने लगे। स्वेटर बुनती नेपाली महिलाएँ, भारी कार्टून ढ़ोते नेपाली पुरुष और निचाई पर दिखने वाले छोटे-2 घर अब ओझल हो रहे थे। वे अब अपनी हिमालय के वैभव और विराट रूप को देखने की कामना को पूरी करने के नजदीक जा रहे थे। हिमालय की विशालता, घाटियों की गहनता तथा प्रकृति की सुकुमारता और सौंदर्य से सभी सैलानी झूमते हुए गाना गाने लगे।

साना साना हाथ जोड़ि पाठ में लेखिका  शान्त थी जैसे की सारे परिदृश्य को अपने अंदर समेट लेना चाहती थी। लेखिका जीप से सिर बाहर निकाल कर कभी ऊँचे शिखर देखती तो कभी झरनों को और कभी साथ बहती तिस्ता नदी को। प्राकृतिक सौंदर्य देख कर लेखिका मंत्रमुग्ध हो गई। वह विशाल हिमालय की स्तुति करना चाहती थी कि उसे ‘सेवन सिस्टर्स वॉटर फॉल’ झरना दिखाई दिया। सभी सैलानी उस खूबसूरत नजारे को कैमरे में कैद करने लग गए।

लेखिका अपने आपको प्राचीन काल की अभिशप्त राजकुमारी सी महसूस करने लगी। वह झरने के अद्भुत सौंदर्य से मुग्ध हो काव्यमयी हो गई। उसने झरने के संगीत से आत्मा का तारतम्य बिठा लिया और उसी में लीन होने लगी। वह सांसारिक भावनाओं से हट कर निर्मल धारा बन बहना चाहती थी कि जितेन उसे आगे जाने के लिए उकसाने लगा।

साना साना हाथ जोड़ि पाठ में लेखिका अनमने मन से उठ कर चल पड़ी। कुछ देर बाद हिमालय का वही पल पल परिवर्तित असीम सौंदर्य दख झूम उठी। कभी सम्पूर्ण सौंदर्य तो कभी सब कुछ बादलमय। उसे लगा कि प्रकृति उसे माया ओर छाया का खेल दिखाकर सयानी बना रही है। धुंध छटने पर उसे छाया-पहाड़ के बीच झरने, नदियों, घाटियों और फूलों से सजी जन्नत दिखाई दी जहाँ लिखा था थिंक ग्रीन।

साना साना हाथ जोड़ि पाठ में लेखिका प्रकृति की अलौकिक घटना को देखकर सोचती है कि एक पल में ही ब्रह्माण्ड में सब कुछ कैसे घटित हो रहा है। प्रकृति अपने अद्भुत रूप और सौंदर्य को लिए नित्य प्रवाहमय है और इसमें चलता रहता है तिनक-सा मानव अस्तित्व। लेखिका महसूस करती है कि जीवन का आनंद आगे चलते रहना ही है।

लेखिका जितेन से कहती है कि यह कार्य बड़ा कठिन होगा। जितेन लेखिका को सड़क बनाने का तरीका तथा जाखिमों की जानकारी देता है और बताता है कि जरा-सी चूक का मतलब है मौत। तभी लेखिका को सिक्किम सरकार का बोर्ड याद आता है, जिस पर लिखा था- “आप ताज्जुब करेंगे पर इन रास्तों को बनाने में लोगों ने मौत को झुठलाया है।” एकाएक लेखिका को पलामू और गुमला के जंगलों में पत्ते तलाशने वाली आदिवासी युवतियाँ ध्यान आती है जो पीठ पर कपड़े से बच्चों को बाँधी थी। लेखिका उन युवतियों के फूले पाँव और पहाडिनों के हाथ पर पड़े ठाठे महसूस कर सोचती है कि सारे सुख चैन एक तरफ हैं और दुःख-दर्द एक तरफ। आम जनता की कहानी लगभग हर जगह एक जैसी है। तभी उसकी सहयात्री मणि तथा जितेन उसे खोजते हुए आ जाते हैं। उसे उदास देख जितेन उसे समझाता है कि यह हमारे देश की आम जनता है जिसे कहीं भी देखा जा सकता है अत: यहाँ का प्राकृतिक सौंदर्य देखो जिसके लिए इतना खर्च करके आए हो।

साना साना हाथ जोड़ि पाठ में लेखिका मन ही मन सोचती है कि यह आम जनता ही नहीं जीवन का संतुलन है जो थोड़ा-सा लेकर बहुत कुछ देत ही लेखिका जीप की तरफ मुडी ही थी कि वे महिलाएं किसी बात को लेकर खिलाखिला कर हँस पड़ी और गमगीन माहौल ताजमहल सा चमक उठा।

ऊंचाई पर चढ़ते समय जितेन बताने लगा कि हर मोड़ पर हेयर पिन बेंट लेते हुए सब ऊँचाई पर तेजी से चढ़ते जाएंगे। हेयर पिन बेट के पहले ही पड़ाव पर लेखिका ने पढ़ने वाले बच्चों को वापस आते हुए देखा तो जितेन ने बताया की तीन-साढ़े तीन कि०मी० पहाड़ी चढ़ाई चढ़ कर ये पढ़ने जाते हैं। लेखिका के स्कूली बस के बारे में पूछने पर जितेन हँसा और कहने लगा कि यह मैदानी नहीं पहाड़ी इलाका है अत: यहाँ बस एक ही स्कूल है। वह बताता है कि ये बच्चे पढ़ते ही नहीं वरन अपनी माँओं के साथ पशुओं को चराते हैं, पानी भरते है तथा शाम को अधिकांश लकड़ियों के भारी-2 गढ़र ढोते हैं जैसे स्वयं मैंने ढोए हैं।

खतरा धीरे-धीरे बढ़ने लगा था। सड़क बहुत संकरी थी। इन रास्तों पर जगह-जगह चेतावनियाँ लिखी हुई थी। कुछ ही दूर चले थे कि चेतावनी पढी कि यहाँ चारों तरफ नरभक्षी हैं, सावधान। परन्तु लेखिका को नरभक्षी नहीं मिले, उसे तो लम्बे-लम्बे बालों वाले याँक मिले थे।

सायंकाल लेखिका ने मवेशियों और लकड़ियों के भारी-भारी गट्ठर ले जाती औरतों को देखा। आसमान में धुंध और बादल छाए थे। कुछ युवतियाँ चाय के बागानों में बोकु पहने चाय की पत्तियां तोड़ रही थी। लेखिका की नजर एक गोरी-सी नवयौवना पर पड़ी जो लाल रंग का बोकू पहने हुए थी। उस नवयुवती का असह्य रूप देखकर लेखिका चीख पड़ी। यूमथांग पहुँचने से पहले उन्हें एक शान्त और छोटी-सी बस्ती युग में पडाव लेना था। वे लोंग में तिस्ता नदी के किनारे पर लकड़ी के बने छोटे-से घर में ठहरे।

मुह हाथ धोकर लेखिका तीस्ता नदी के किनारे पड़े पत्थरों पर बैठकर सायंकाल की छटा और वहाँ का क्रिया कलाप देखने लगी। वह प्राकृतिक सौंदर्य को निहार कर सोच रही थी कि हमारी पीढी ने प्रकृति के झरनों और उसके लय ताल पर गति से खिलवाड़ कर उसके संदर्य को बिगाड़ा है जो अक्षम्य अपराध है। लेखिका तीस्ता नदी के जल को अंजुलि में भरकर सोचने लगी कि ऐसे तो संकल्प किया जाता है, परन्तु वह कमजोर व्यक्ति की तरह प्रार्थना करने लगी कि इस पानी में उसकी सारी तामसी भावनाएं बह जाएं और दिल निर्मल हो जाए। धीरे-धीरे रात हो गई, जितेन काठ के खिलौने से गाने की धुन बजाने लगा और सब पर ऐसा जादू छाया कि सब नाचने लगे। पचास वर्षीय मणि ने तो सभी को नृत्य कर हैरान कर दिया। न जाने यह आनंद कहाँ से बरस रहा था?

ला युग की सुबह तीस्ता नदी की तरह शान्त थी। लोगों की जीविका का साधन पहाड़ी आलू, धान की खेती और दारू का व्यापार था। लेखिका बर्फ देखने को बेचैन थी परन्तु यहाँ बर्फ का एक कतरा भी नहीं था। वहीं घूमते हुए एक सिक्कमी नवयुवक ने बताया की प्रदूषण के कारण बर्फ कम गिरती है। उसने कहा कि ‘कटाओ’ जोकि भारत का स्विटजरलैण्ड कहा जाता है वहाँ शर्तिया बर्फ मिलेगी । कटाओ यहाँ से करीब 500 फीट ऊँचाई पर था। उस युवक की पत्नी उत्सुकता से देख रही थी और महुआ गुडुप करने वाली गौमाता को मीठी झिड़कियाँ देकर भगा रही थी।

सभी अपने लक्ष्य कोटा’ की तरफ चल दिए थे। रास्ता पहले ही खतरनाक था ऊपर से धुंध और बारिश व कठिनाई पैदा कर रही थी। जितेन अनुभव के बल गाड़ी चला रहा था। रास्ते में सिवाय चेतावनी और उनके परिंदा भी नहीं था। करीब आधा रास्ता कट जाने पर धुंध छंटी। नार्गे ने कहा की कटाओ की तरह न तो स्विटजरलैंड सुन्दर है और न ही इतनी ऊँचाई पर है।

हमें बर्फ के ढके पहाड़ देखते ही पता चल गया था कि कटाओ के नजदीक पहुंच गए हैं। पहाड़ पर कहीं पाऊडर-सी बर्फ थी तो कहीं धूप से पिघल कर पहाड़ दिखाई दे रहा था। जितेन ने बताया की यह बिल्कुल ताजा बर्फ है। लेखिका जीप में से सिर बाहर निकालकर चाँदी-सी चमकती बर्फ को उल्लासित हो देख रही थी। जितेन ने उससे पूछा कि कैसा लग रहा है तो उसने कहा कि राम रोछा। जितेन नेपाली शब्द सुन कर झूम उठा। अगले ही पल बर्फ मोतियों की तरह गिरने लगी और जितेन प्राकृतिक सौंदर्य पर मुग्ध हो नेपाली गाना गाकर नाचने लगा।

सभी सैलानी जीप से उतरकर बर्फ में खेलने लगे और बर्फमय प्रकृति को कैमरे में कैद करने लगे। लेखिका के पास जूते नहीं थे और न ही वहाँ कोई टूरिस्ट स्पॉट था। उसके पैर ठण्ड से झनझनाने लगे पर मन खुशी से झूम रहा था। लेखिका सारे दृश्य को अपने अन्दर समेटने की कोशिश में थी ताकि महानगर के जीवन में भी इस प्राकृतिक छटा का मजा ले सके। उसे लगा कि इसी शान्त और मधुर वातावरण के कारण ऋषि-मुनियों ने इसे अपनी तपोभूमि बनाया होगा। इसी के आँचल में बैठ वे सारे जगत को सुखी करते थे। अगर दुष्ट व्यक्ति भी इस अनूठी छटा को देख ले तो करुणावतार बुद्ध बन जाए। उसने मणि से मिल्टन की कविता के बारे में पूछा।

लेखिका मणि से पूछती है कि क्या उसने मिल्टन की वह (ईव) कविता पढ़ी है? परन्तु मणि दार्शनिक की तरह हिमालय को जलस्तम्भ बताने लगी थी। उसने कहा कि प्रकृति कितने अच्छे तरीके से जल संग्रह करती है तथा जब गर्मियों में पानी के लिए लोग तरस रहे होते हैं, तब ये प्यास बुझाने का काम करती है। वह इन हिम शिखरों को नमस्कार करने लगी। लेखिका भी यही सोच रही थी कि उसे पत्थर तोडने वाली पहाड़िनों का ध्यान आ गया और वह उदास हो गई?

यूमथांग में प्रियुता तथा रूडोडेंड्रो के फूलों की बहुतायत के विषय पर जितेन ने बताया कि पंद्रह दिनों बाद यह घाटी फूलों की सेज बन जाएगी। रास्ता अब चौड़ा आ गया था। जितेन ने बंदरों को अपने बाल-बच्चों के साथ देख बताया कि यहाँ बंदरो का माँस कैंसर से बचने के लिए खाया जाता है। एक ने पूछा कि क्या तुमने बंदर का माँस खाया है तो उसने कहा कि उसने तो कुत्ते का भी माँस खाया है। सभी सैलानी उसे गप्पी समझ रहे थे। परन्तु लेखिका को उसकी बात पर विश्वास था क्योंकि उसने दक्षिण बिहार में सूअर का दूध पीने को विवश आदिवासी देखे थे|

साना साना हाथ जोड़ि पाठ में लेखिका बताती है कि रोमांच से भरा सफर पूरा कर वे यूमथांग पहुँच गए थे। यूमथांग इतना सुंदर नहीं था जितना कटाओ था। लेखिका को मंजिल से ज्यादा मंजिल तक का सफर ज्यादा रोमांचक लगा। उसने चिप्स बेचने वाली एक सिक्कमी महिला से पूछा कि क्या तुम सिक्कमी हो पर उसका जवाब था कि वह इंडियन है। जवाब सुनकर लेखिका बेहद खुश हुई कि वे भारत में घुलमिलकर इतना अच्छा महसूस कर रहे हैं। उसने सोचा की काश! कश्मीर में भी ऐसी सहज सन्तुष्टी होती। अचानक एक कुत्ते ने रास्ता काटा तो जितेन ने बताया कि पहाड़ी कुत्ते सिर्फ चांदनी रात में ही भौंकते हैं। फिर उसके गुरु नानक के फुटप्रिन्टों वाले एक पत्थर की जानकारी दी तथा बताया कि गुरु नानक की थाली से छिटक कर चावल जहाँ-जहाँ गिरे वहाँ-वहाँ चावल की खेती होती है। अर्थात उसने गुरु नानक देव की महिमा भी बताई।

लगभग तीन-चार किलोमीटर चलने के बाद जितेन ने खेदुम दिखाया जहाँ सभी देवी-देवताओं का निवास है तथा उनका भय दिखाया। उसने कहा कि वे पहाड़ों पर गंदगी नहीं फैलाते बल्कि नदी, झरनों, पहाड़ों की पूजा करते हैं। इस प्रकार जितेन ने उन्हें गैंगटोक कि सुन्दरता का राज बताया। उसने बताया कि यूमथांग को टूरिस्ट स्पॉट आर्मी के कप्तान शेखरदत्ता ने बनाया और अब भी यहाँ रास्ते बनने लग रहे हैं। लेखिका सोचती है कि इस सौंदर्य की खोज करना अभी भी जारी है। जीप आगे बढ़ने लगती है। साना साना हाथ जोड़ि का शाब्दिक अर्थ है छोटे छोटे हाथ को जोड़कर |

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