वाख कविता की व्याख्या, भावार्थ, सारांश, प्रश्न उत्तर और अभ्यास प्रश्न कक्षा-9

इस पोस्ट में हमलोग ललद्ध के वाख का सारांश, वाख का भावार्थ, वाख की व्याख्या, वाख के प्रश्न उत्तर को पढ़ेंगे| वाख कविता क्लास 9 हिन्दी क्षितिज भाग 1 के चैप्टर 10 से लिया गया है|

ललद्ध के वाख का सारांश / laladyd ke wakh ki summary    

ललद्धद कश्मीर की कवयित्री है| इनकी रचना वाख मूल रूप से कश्मीर भाषा में थी| इसका हिन्दी अनुवाद इस पाठ में दिया गया है| ललद्धद भक्तिकाल के सिद्धांतों से प्रेरित हैं| यह संसार की संपूर्ण शक्ति को परमात्मा में निहित मानती है| प्रथम वाख में ललद्धद ने ईश्वर प्राप्ति के लिए अपने द्वारा किए गए प्रयासों की व्यर्थता का चित्रण किया है| इस वाख में वह अपने आप को कच्चे घड़े के समान बताया है| दूसरे वाख में ललद्धद ने सभी के साथ समान आचरण व व्यवहार करने की बात बतायी है| उन्होंने कहा है की समभाव होने पर व्यक्ति के अहंकार समाप्त हो जाते हैं|तीसरे वाख में ललद्धद ने बताया है कि व्यक्ति जन्म के समय सभी प्रकार की बुराइयों से दूर होता है लेकिन जैसे-जैसे बड़ा होता जाता है वैसे-वैसे उसके अंदर मनोविकार आने लगते हैं |चौथे वाख में ललद्धद ईश्वर की सर्वव्यापकता का चित्रण किया है| वह कहती है कि ईश्वर संसार के कण-कण में व्याप्त है अतः हमे सभी को प्रेम की दृष्टि से देखना चाहिए| 

ललद्ध वाख कविता की व्याख्या व भावार्थ  wakh ka bhavarth class 9 

रस्सी कच्चे धागे की, खींच रही मैं नाव।
जाने कब सुन मेरी पुकार, करें देव भवसागर पार।
पानी टपके कच्चे सकोरे, व्यर्थ प्रयास हो रहे मेरे।
जी में उठती रह-रह हूक, घर जाने की चाह है घेरे।।

वाख की व्याख्या व भावार्थ– मनुष्य का जीवन कच्ची मिट्टी के घड़े के समान है जैसे कच्चे घड़े में पानी नहीं रुकता वैसे ही कवयित्री ने जीवन को माना है। भक्त कवियों के यहाँ सबसे बड़ी सिद्धि भवसागर अर्थात् सांसारिक मोह-माया से मुक्ति पा जाने में बताई गई है। जीवन के साधन रूपी कच्चे धागों से इस संसार रूपी भवसागर में तिरती हुई मनुष्य की जीवन-नौका को डूबने से बचाने के लिए एक कुशल मांझी की जरुरत है; कवयित्री को यह अखंड विश्वास है कि एक परमात्मा ही उसकी यह जरुरत पूरी करने में समर्थ हैं। मनुष्य का मन स्वभावतः शंकालु होता है। इसलिए कवयित्री कहती है कि मुझे घर अर्थात् ईश्वर की शरण में जाना है। अत: मेरे मन में वहाँ शीघ्रातिशीघ्र जाने की इच्छा बलवती हो उठी है।

खा-खाकर कुछ पाएगा नहीं,
न खाकर बनेगा अहंकारी।
सम खा तभी होगा समभावी,
खुलेगी साँकल बंद द्वार की।

वाख की व्याख्या व भावार्थ–  मानव-मात्र को संबोधित करती हुई वह कहती है कि ईश्वर के आराधन की अवस्था में मनुष्य को अपना सर्वस्व समर्पित करना होता है। अत: ऐसा प्रतीत होता है कि जैसे कुछ प्राप्त ही नहीं हुआ। वस्तुत: ईश्वर की कृपा उसका अनुग्रह सब पर समान रूप से होता है। लेकिन मनुष्य जब ईश्वर की अखंड सत्ता में भेद उत्पन्न करके उसे टुकड़ों में बाँटकर देखता है तो वह अपने व्यक्तित्व और अपनी मान्यताओं को श्रेष्ठ और दूसरों को स्वयं से नीचा समझने लगता है। इसलिए कवयित्री मनुष्य को श्रेष्ठता के अहंकार से बचते हुए अपने आत्मा और अंत:करण के विकास की सलाह देती हुई कहती है कि सबको समान समझकर, आडंबरों से ऊपर उठकर, अपने में समभाव पैदा करो। क्योंकि इससे हृदय विशाल और चित्त शुद्ध होता है, चेतना व्यापक होती है। फलत: आत्मा के दरवाजों पर लगी अज्ञान,अहंकार की कुण्डी ढीली पड़ जाती है और मन-मस्तिष्क प्रकाश और ऊर्जा से भर जाता है।

आई सीधी राह से, गई न सीधी राह।
सुषुम-सेतु पर खड़ी थी, बीत गया दिन आह!
जेब टटोली, कौड़ी न पाई।
माझी को दूं, क्या उतराई?

वाख का भावार्थ व व्याख्या–  समर्पण ही एक ऐसा मार्ग है जिससे उस परम पिता को प्राप्त किया जा सकता है। उसकी दी हुई जिन्दगी तो सोच-विचार और हठयोग साधना में बीत गई। अंततः जब उस पार उतारने वाले मॉझी ने, इस संसार रूपी सागर से बेड़ा पार लगाया तो मैं उसके प्रति कृतज्ञता भी ज्ञापित नहीं कर पाई। इस कृपा के बदले में एक कौड़ी भी उस माँझी को नहीं दे पाई। आशय यह है कि मनुष्य दुनिया के सरोकारों में फँसकर अपने लक्ष्य को भूल जाता है और समय बीत जाने पर, जीवन के अंतिम क्षण में जब उसे अपने जीवन की व्यर्थता का बोध होता है; तब कुछ भी करने में असमर्थता के कारण बड़ी पीड़ा होती है।

थल-थल में बसता है शिव ही,
भेद न कर क्या हिंदू-मुसलमान।
ज्ञानी है तो स्वयं को जान,
वही है साहिब से पहचान।।

वाख का भावार्थ व व्याख्या– प्रत्येक स्थान पर निवास करने वाला शिव तत्त्व अर्थात् कल्याणकारी परमात्मा एक है। इसलिए उसी की बनाई सृष्टि में हिंदू और मुसलमान का भेद कैसा? वस्तुतः हिन्दू और मुसलमान दोनों एक हैं, उनकी मनुष्यता एक है। ओ मानव! यदि तेरे अंंदर ज्ञान है, तो तू सबसे पहले खुद को जान ले और जिस दिन तू खुद को समझ लेगा, उसी दिन तू उस परमपिता का भी पहचान कर लेगा और उसका परिचित बन जाएगा।

वाख के प्रश्न उत्तर / question answer of wakh kavita 

2’रस्सी’ यहाँ किसके लिए प्रयुक्त हुआ है और वह कैसी है?

उत्तर-रस्सी शब्द यहाँ जीवात्मा अर्थात निरन्तर चलने वाली साँसों के लिए प्रयुक्त किया है। वह कच्चे धागे के समान स्वभावतः बहुत कमजोर है जो कभी भी टुट सकती है।

2. कवयित्री द्वारा मुक्ति के लिए किए जाने वाले प्रयास व्यर्थ क्यों हो रहे है?

उत्तर-कवयित्री कमजोर साँसों रुपी डोरी से जीवन रुपी नौका को भवसागर से पार ले जाना चाहती है पर शरीर रुपी कच्चे बरतन से जीवन रुपी जल टपकता जा रहा है इसलिए उनका प्रयास व्यर्थ हो जा रहा है

3. कवयित्रो का ‘घर जाने की चाह’ से क्या तात्पर्य है?

उत्तर– सभी संतो के समान कवयित्री भी मानती है कि उसका असली घर तो वहां है जहां परमात्मा निवास स्थान हैं इसलिए वह ईश्वर की कृपा प्राप्त करने और उसी में लीन हो जाना चाहती है। यही उसके घर जाने की चाह है।

4.भाव स्पष्ट कीजिए 

(क) जेब टटोली कौडी न पाई।

(ख) खा-खाकर कुछ पाएगा नहीं 

न खाकर बनेगा अहंकारी।

उत्तर-
क. प्रस्तुत पंक्ति का तात्पर्य यह है कि मनुष्य संसार में स्वार्थ सिद्ध करने के प्रयास में हमेशा लगा रहता है और इस तरह वह अपने लक्ष्य से भटक जाता है। जिससे वह अपने जीवन का महत्वपूर्ण समय व्यतीत कर देता है। और अंत में कुछ न कर पाने की असमर्थता की पीड़ा से व्याकुल हो जाता है।
ख. प्रस्तुत पंक्ति का तात्पर्य यह है कि सबको धार्मिक रुढ़ियों पुरानी परंपराओं से ऊपर उठकर समान भाव को अपनाना होगा और अहंकार का त्याग करना होगा।

5- बंद द्वार की साँकल खोलने के लिए ललद्यद ने क्या उपाय सुझाया है?

उत्तर– आत्मा में व्याप्त अज्ञानरूपी अहंकार, जातिवाद, छुआछूत इत्यादि सामाजिक बुराइयों के भाव को मनुष्य जब त्यागकर समान भाव से सबको देखेगा तो उसके आत्मा के बंद द्वार या दरवाजे के  साँँकल या खिड़कियां खुल जाएंगे।

6- ईश्वर प्राप्ति के लिए बहुत से साधक हठयोग जैसी कठिन साधना भी करते हैं, लेकिन उससे भी लक्ष्य प्राप्ति नहीं होती। यह भाव किन पंक्तियों में व्यक्त हुआ है?

उत्तर– 
आई सीधी राह से, गई न सीधी राह। 
सुषुम-सेतु पर खड़ी थी, बीत गया दिन आह!
जेब टटोली, कौड़ी न पाई। 
माझी को दूं, क्या उतराई?

7. ‘ज्ञान’ से कवयित्री का क्या अभिप्राय है?

उत्तर-जो स्वयं को पहचान ले वही ज्ञानी है, जो प्रत्येक व्यक्ति में अपने आप का दर्शन करें वही यानी है ।कवयित्री का ज्ञानी से यही अभिप्राय है ।

वाख कविता की रचना और अभिव्यक्ति

हमारे संतो, भक्तों और महापुरुषों ने बार-बार चेताया है कि मनुष्यों में परस्पर किसी भी प्रकार का कोई भेदभाव नहीं होता, लेकिन आज भी हमारे समाज में भेदभाव दिखाई देता है |

(क) आपकी दृष्टि में इस कारण देश और समाज को क्या हानि हो रही है?
(ख) आपसी भेदभाव को मिटाने के लिए अपने सुझाव दीजिए

वाख के अभ्यास प्रश्न 

प्रश्न खा-खाकर कुछ प्राप्त क्यों नहीं हो पाता? 
प्रश्न कवयित्री क्या प्रेरणा देना चाहती है? 
प्रश्न मनुष्य मन ही मन भयभीत क्यों हो जाता है? 
प्रश्न मांझी और उतराई से क्या तात्पर्य है? 
प्रश्न ईश्वर वास्तव में कहां है? 
प्रश्न कवयित्री ईश्वर के विषय में क्या मानती थी? 
प्रश्न मनुष्य अहंकारी क्यों बन जाता है? 
प्रश्न कच्चे सकोरे से क्या आशय है?

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