हिन्दी साहित्य का काल विभाजन-hindi sahity ka kal vibhajan

हिन्दी साहित्य का काल विभाजन / hindi sahity ka kal vibhajan

काल-विभाजन और विभाजित साहित्य का नामकरण साहित्य के इतिहास की सबसे बड़ी समस्याएं हैं | साहित्य के नामकरण के सन्दर्भ में आचार्य रामचंद्र शुक्ल कहते हैं की –  

“सारे रचनाकाल को केवल आदि, मध्य, पूर्व और उत्तर इत्यादि खण्डों में आँख मूंदकर बांट देना, यह भी न देखना की खंड के भीतर क्या आता है, क्या नहीं, किसी वृत्तसंग्रह को इतिहास नहीं बना सकता |”

आचार्य रामचंद्र शुक्ल अपनी पुस्तक ‘हिंदी साहित्य का इतिहास’ में अपने द्वारा किये गए नामकरण के सन्दर्भ में लिखा है की –

“जिस कालविभाग के भीतर किसी विशेष ढंग की रचनाओं की प्रचुरता दिखाई पड़ी है,वह एक अलग काल माना गया है और उनका नामकरण उन्हीं रचनाओं के स्वरुप के आधार पर किया गया है |”

शुक्ल जी ने नामकरण का आधार एक विशेष काल में विशेष ढंग की रचनाओं की प्रचुरता को आधार माना है | हिंदी साहित्य के इतिहास ग्रंथों में काल-विभाजन के लिए प्राय चार पद्धतियों का अवलंब लिया गया है। पहली पद्धति के अनुसार संपूर्ण इतिहास का विभाजन चार युग अथवा काल खंडों में किया गया है- (1)आदिकाल (2)भक्तिकाल (3)रीतिकाल (4)आधुनिककाल आचार्य शुक्ल द्वारा और उनके अनुसरण पर नागरी प्रचारिणी सभा के इतिहासों में इसी को ग्रहण किया गया है। दूसरे क्रम के अनुसार केवल तीन युगों की कल्पना ही विवेक सम्मत है- (1)आदिकाल (2)मध्यकाल (3)आधुनिककाल भारतीय हिंदी परिषद के इतिहास में इसे ही स्वीकार किया गया है और गणपति चंद्र गुप्त ने भी अपनी वैज्ञानिक इतिहास में इसी का अनुमोदन किया है।

 

साहित्य के काल विभाजन करने की पद्धतियों के अपने-अपने गुण दोष हैं, परंतु यहां भी समन्वयात्मक दृष्टिकोण ही श्रेयस्कर है। जैसा कि हमने पूर्व विवेचन में स्पष्ट किया है साहित्य के इतिहास में युग चेतना और साहित्य चेतना का अनिवार्य योग रहता है। अतः साहित्य के विभाजन में भी ऐतिहासिक काल-क्रम और साहित्य विधा दोनों का आधार ग्रहण करना होगा। साहित्य के कथ्य अर्थात संवेद्य तत्व के विकास का निरूपण करने के लिए संपूर्ण युगों को आधार मानकर चलना होगा और उसके रूप का विकास क्रम समझने के लिए अलग-अलग विधाओं को इस समन्विति पद्धति को स्वीकार कर लेने पर हिंदी साहित्य के काल विभाजन की समस्या बहुत कुछ हल हो सकती है।  

जॉर्ज ग्रियर्सन का काल विभाजन व नामकरण

यद्यपि हिंदी साहित्य के इतिहास लेखन की परंपरा की शुरुआत गार्सा द तासी से होती है। लेकिन काल विभाजन और नामकरण का पहला प्रयास जॉर्ज अब्राहम ग्रियर्सन ने अंग्रेजी भाषा में किया था। जॉर्ज ग्रियर्सन ने अपने साहित्य इतिहास को 11 काल खंडों में विभाजित किया है।

1- चारण काल
2- 15 वीं सदी का धार्मिक पुनर्जागरण काल
3- जायसी की प्रेम कविता
4- कृष्ण संप्रदाय
5- मुगल दरबार
6- तुलसीदास
7- प्रेम काव्य
8- तुलसीदास के अन्य परवर्ती
9- 18 वीं शताब्दी
10- कंपनी के शासन में हिंदुस्तान
11- विक्टोरिया के शासन में हिंदुस्तान

मिश्र बंधु का काल विभाजन और नामकरण

मिश्र बंधु ने अपने संपूर्ण साहित्य को पांच काल खंडों में विभाजित किया है। मिश्र बंधु के साहित्य इतिहास को आचार्य रामचंद्र शुक्ल ने बड़ा भारी कवि वृत्त संग्रह कहा है। इन्होंने अपने साहित्य इतिहास के विभाजन के लिए संवत् काल को चुना है।
1- आरंभिक काल
क)- पूर्व आरंभिक काल(संवत् 700-1343)

ख)- उत्तर आरंभिक काल(संवत् 1343-1444)
2- माध्यमिक काल
क)- पूर्व माध्यमिक काल(संवत् 1445-1560)

ख)- प्रौढ़ माध्यमिक काल(संवत् 1561-1680)
3- अलंकृत काल
क)- पूर्व अलंकृत काल(संवत् 1681-1790)

ख)- उत्तर अलंकृत काल(संवत् 1791-1889)
4- परिवर्तन काल(संवत् 1890-1925)
5- वर्तमान काल(संवत् 1925 से आगे)
उपर्युक्त काल विभाजन संवत् में है।

आचार्य रामचंद्र का काल विभाजन और नामकरण

आचार्य रामचंद्र शुक्ल ने अपने साहित्य इतिहास को चार भागों में विभाजित किया है
1- वीरगाथा काल (संवत् 1050-1375)
2- भक्ति काल ( संवत् 1375-1700)
3- रीतिकाल (संवत् 1700-1900)
4- आधुनिक काल ( संवत् 1900 से आगे)

टिप्पणी-: शुक्ल जी ने आधुनिक काल को ही गद्य काल कहा है। इसे दो भागों में विभक्त किया है। ‘गद्य खंड’ और ‘काव्य खंड’ पुनः शुक्ल जी ने काव्य खण्ड को ‘पुरानी-काव्य-धारा’ और ‘नई-काव्य-धारा’ नाम से विभाजित किया है। शुक्ल जी ने आधुनिक काल के तीन उत्थानों की चर्चा की है जो निम्नवत् है-

1-प्रथम उत्थान- ( संवत् 1925-1950)
2- द्वितीय उत्थान- (संवत् 1950-1975)
3- तृतीय उत्थान- (संवत् 1975 से आगे)

हजारी प्रसाद द्विवेदी का काल विभाजन व नामकरण

हजारी प्रसाद द्विवेदी ने अपने साहित्य इतिहास के नामकरण व काल विभाजन का आधार संवत् के स्थान पर पूरी सदी को माना है।

1-आदिकाल (सन् 1000-1400 ई.)
2- भक्तिकाल (सन् 1400-1700 ई.)
3- रीतिकाल (सन् 1700-1900 ई.)
4- आधुनिक काल (1900 से आगे)

डॉ रामकुमार वर्मा का काल विभाजन व नामकरण

1- संधिकाल (संवत् 700-1000)
2- चारणकाल (संवत् 1000-1375)
3- भक्तिकाल (संवत् 1375-1700)
4- रीतिकाल (संवत् (1700-1900)
5- आधुनिक काल (संवत् 1900 से आगे)

श्यामसुंदर दास का काल विभाजन व नामकरण

1- वीरगाथा युग (संवत् 1050-1400)
2- भक्तियुग (संवत् 1400-1600)
3- रीतियुग (संवत् 1600-190)
4- नवीन विकास युग (संवत् 1900 से आगे)

गणपति चंद्र गुप्त का काल विभाजन व नामकरण

1- प्रारंभिक काल या उन्मेष काल ( सन् 1184-1350)
क)- धार्मिक रास काव्य परम्परा (जैन कवियों के काव्य का उल्लेख)

ख) संत काव्य (संत कवियों के काव्य का उल्लेख)
2- मध्यकाल या विकास काल (सन् 1350-1857)
क)- पूर्व मध्य काल या उत्कर्ष काल (सन्1300-1500)

ख)- मध्यकाल या चरमोत्कर्ष काल (सन् 1500-1600)
ग)- उत्तर मध्य काल या अपकर्ष काल (सन् 1600-1857)
3- आधुनिक काल (1857 से आगे) आधुनिक काल के विभाजन में गुप्त जी ने परंपरा का ही पालन किया है–
क)- भारतेंदु युग (1857-1900)

ख)- द्विवेदी युग (190-1920)
ग)- छायावाद युग (1920-1937)
घ)- प्रगतिवादी युग (1937-1945)
अं)- प्रयोगवाद युग (1945-1965)

रामखेलावन पांडे का काल विभाजन व नामकरण

1- संक्रमण काल या प्रवर्तन काल (1000-1400 ई.)
2- संयोजन काल (1401-1600 ई.)
3- संवर्धन काल (1601-1800 ई.)
4- संचयन काल (1801-1900 ई.)
5- संबोधित काल (1901-1947 ई.)
6- संचरण काल (1947 से आगे)

रामस्वरूप चतुर्वेदी का काल विभाजन व नामकरण

1- वीरगाथा काल (1000-1350 ई.)
2- भक्ति काल (1350-1650 ई.)
3- रीतिकाल (1650-1850 ई.)
4- गद्य काल (1850 से आगे) 

Related Posts

error: Content is protected !!