लखनवी अंदाज का सार,प्रश्ननोत्तर,अन्य महत्वपूर्ण प्रश्न कक्षा 10

इस पोस्ट में हमलोग लखनवी अंदाज का सारांश, लखनवी अंदाज प्रश्न उत्तर, लखनवी अंदाज के अन्य महत्त्वपूर्ण प्रश्न को पढ़ेंगे|

लखनवी अंदाज का सारांश/लखनवी अंदाज का सार, 

यूँ तो यशपाल ने लखनवी अंदाज व्यंग्य यह साबित करने के लिए लिखा था कि बिना कथा के कहानी नहीं लिखी जा सकती परंतु एक स्वतंत्र रचना के रूप में इस रचना को पढ़ा जा सकता है। यशपाल उस पतनशील सामंती वर्ग पर कटाक्ष करते हैं जो वास्तविकता से बेखबर एक बनावटी जीवन शैली का आदी है। कहना न होगा कि आज के समय में भी ऐसी परजीवी संस्कृति को देखा जा सकता है।

लखनवी अंदाज पाठ में लेखक बताता है कि वह भीड़ से बचने के लिए दूसरे दर्जे की टिकट लेकर रेलगाड़ी के एक डिब्बे में सवार हुआ। डिब्बे में उन्होंने देखा कि एक लखनऊ के नवाबों जैसा भद्र व्यक्ति पहले से ही बैठा था और उसने अपने पास खीरे रखे हुए थे। उस भद्र पुरुष के चेहरे पर लेखक को चिंता और संकोच का भाव दिखाई देता है। नवाब साह में सहयात्री मिलने की उत्सुकता न देख लेखक सामने की बर्थ पर बैठ गया। खाली समय में कवि कल्पना करने का काम करते हैं इसलिए नवाब साहब के संकोच और असुविधा के विषय में सोचने लगे। उन्होंने अनुमान लगाया कि नवाब साहब ने अकेले ही यात्रा करने के उद्देश्य से दूसरे दर्जे का टिकट खरीदा होगा और सफर काटने के लिए खीरे खरीदे होगें। लेकिन लेखक को देखकर शायद वह संकोच में पड़ गया।

नवाब साहब ने स्थिति को भांपते हुए लेखक से नमस्कार करके खीरे खाने के विषय में पूछा। नवाब के बदले हुए स्वभाव को देखकर लेखक ने समझ लिया कि वह उन्हें सामान्य लोगों की तरह समझ रहा है और उसने मना कर दिया। नवाब साहब ने खीरों को धोया और ऊपरी हिस्सा काटकर उनको रगड़ा। फिर चाकू से छीलकर उन्हें फांकों में काट लिया। उन पर जीरा मिला नमक और लाल मिर्च डाली। खीरों के रसास्वादन की कल्पना से नवाब साहब के मुँह में पानी आ रहा था।

लखनवी अंदाज पाठ में लेखक सोच रहा था कि वैसे तो रईस बनने का ढोंग कर रहा है और लोगों से नजरे बचाकर खीर खा रहा है। नवाब साहब ने फिर लेखक से खीरे खाने के विषय में पूछा। नमक मिर्च लगे ताजे खीरे देखकर लेखक के मुँह में पानी तो आ रहा था किंतु स्वाभीमान को बचाए रखने के लिए यह कहते हुए मना कर दिया कि इच्छा नहीं है और मेरा अमाशय भी कमज़ोर है। फिर नवाब साहब ने प्यासी आँखों से खीरे की फाँकों को देखा और एक लम्बी साँस लेकर खीरे की एक फाँक को नाक तक ले जाकर सूँघा। स्वाद का आनंद लेकर और मुँह में आए पानी को पी कर फाँक को खिड़की से बाहर फेंक दिया। इस तरह उन्होंने सभी फाँके सूँघकर बाहर फेंक दी।

खीरे की सारी फाँके सूंघकर बाहर फेंकने के बाद नवाब साहब ने तौलिए से हाथ-मुँह पोंछते हुए गर्व के साथ लेखक की ओर ऐसे देखा जैसे वह स्वयं को खानदानी रईस बता रहा हो। नवाब साहब लेट गए और लेखक ने, यह सोचते हुए कि यही है खानदानी शिष्टता, स्वच्छता और कोमलता, अपना सिर उसके सम्मान में झुका लिया।

लेखक यह सोच रहा था कि क्या इस सुगंध और स्वाद के सूक्ष्म, बढ़िया और अमूर्त तरीके से पेट की तृप्ति हो सकती है? तभी नवाब साहब ने भरे पेट जैसी डकार लेखक से कहा कि खीरा स्वादिष्ट तो होता है किंतु अमाशय के लिए भारी होता है। लेखक की सोचने की शक्ति जागृत हो गई, उसे नवाब साहब एक नई कहानी का लेखक प्रतीत हुआ। उन्होंने सोचा कि खीरे खाए बिना ही पेट भर सकता है और डकार आ सकती है तो फिर बिना विचार, घटना, पात्रों के एक नई तरह की कहानी भी लिखी जा सकती।

लखनवी अंदाज का प्रश्न उत्तर

1.लेखक को नवाब साहब के किन हाव भावों से महसूस हुआ कि वे उनसे बातचीत करने के लिए तनिक भी उत्सुक नहीं है?

उत्तर– जब लेखक दूसरे दर्जे के डिब्बे में चढ़ा तो वहां पर बैठे एक नवाब साहब के हाव भाव देखकर ऐसा लगा जैसे वह उस डिब्बे में अकेले ही सफर करना चाहते हैं निम्नलिखित पंक्तियों से नवाब साहब के हाव-भाव को समझा जा सकता है –
1- लेखक को देखते ही नवाब साहब की आंखों में असंतोष का भाव दिखने लगा। 
2- नवाब साहब ने लेखक से बातचीत करने की पहल नहीं की। 
3- नवाब साहब लेखक की ओर देखने की बजाय खिड़की की ओर देखने लगे।

2.नवाब साहब ने बहुत ही यत्न से खीरा काटा, नमक-मिर्च बुरका, अंतत: सूँघकर ही खिड़की से बाहर फेंक दिया। उन्होंने ऐसा क्यों किया होगा? उनका ऐसा करना उनके कैसे स्वभाव को इंगित करता है?

उत्तर– नवाब साहब ने बहुत ही जतन से खीरा काटा, नमक मिर्च बुरका और अंत में उसे नाक के पास ले जाकर सूँघकर खिड़की से बाहर फेंक दिया। संभवतः लेखक को नीचा दिखाने और अपनी खानदानी रईसी का परिचय देने के लिए वह ऐसा किया होगा। उसका ऐसा करना उसके अभिमानी स्वभाव को दर्शाता है।

3.बिना विचार, घटना और पात्रों के भी क्या कहानी लिखी जा सकती है। यशपाल के इस विचार से आप कहाँ तक सहमत है?

उत्तर– यशपाल के इस विचार से हम पूर्णत: सहमत हैं कि बिना विचार, घटना और पात्रों के भी कहानी लिखी जा सकती है। अनेकों बार ऐसी बात अपने-आप होती चली जाती है जिसके विषय में न तो हमने कभी सोचा होता है और न ही विचार किया होता है। वह बात बढ़ते-बढ़ते एक कहानी का आकार ले लेती है और घटना न होते हुए भी वह घटित हो जाती है देखने में तो वह एक मामूली सी बात होती है लेकिन वह एक कथा का रूप धारण कर लेती है।

4.आप इस निबंध को और क्या नाम देना चाहेंगे?

उत्तर– मेरे हिसाब से इस निबंध का दूसरा नाम ‘रस्सी जल गई पर एंठन न गई’ होना चाहिए।

लखनवी अंदाज का रचना और अभिव्यक्ति

5-क.नवाब साहब द्वारा खीरा खाने की तैयारी करने का एक चित्र प्रस्तुत किया गया है इस पूरी प्रक्रिया को अपने शब्दों में व्यक्त कीजिए। 

उत्तर– नवाब साहब ने तौलिए को झाड़कर अपने सामने बिछाया। सीट के नीचे रखें लोटे को उठाकर पास में रखें दो खीरों को खिड़की से बाहर धोया और तौलिए से पोछा फिर जेब से चाकू निकालकर दोनों खीरों के सिरे काटे और रगड़ कर झाग निकाले। खीरे को बड़ी सावधानी से छीला और उनकी फांकें बनाकर तौलिए पर सजाया। नवाब साहब ने उन खीरों पर जीरा मिला नमक और लाल मिर्च छिड़का |

5-ख.किन-किन चीजों का रसास्वादन करने के लिए आप किस प्रकार की तैयारी करते हैं?

उत्तर– जिन चीजों का हम रसास्वादन करना चाहते हैं उनकी कल्पना मात्र से ही हमारे मुंह में पानी आ जाता है। लाल टमाटर का रसास्वादन करने के लिए हम उसे  अच्छी तरह से धोकर काट लेंगे। तरबूज का रसास्वादन करने के लिए तरबूज को काटकर उसकी फांके बना लेते हैं और तरबूज में से उसके बीज को निकाल कर उस पर नमक भुरभुरा लेते हैं। इसी तरह रसास्वादन के लिए तरह-तरह की तैयारी करते हैं।

6.खीरे के संबंध में नवाब साहब के व्यवहार को उनकी सनक कहा जा सकता है। आपने नवाबों की और भी सनकों और शौक के बारे में पढ़ा-सुना होगा। किसी एक के बारे में लिखिए। 

उत्तर– नवाब लोग अपनी वस्तु हैसियत आदि को बहुत ही बड़ा चढ़ाकर दिखाते और बताते हैं। इस तरह की प्रवृत्ति के व्यक्ति गरीबों को कभी भी महत्व नहीं देते हैं। वह गरीबों का शोषण करके उनसे प्राप्त धन संपत्ति का अपने ऐसो आराम पर खर्च करके दुरुपयोग करते हैं। इस तरह की सोच के व्यक्ति समाज कल्याण और मानव कल्याण के लिए कोई भी कार्य नहीं करते हैं। (आप लोग इसी तरह के सोच के नवाब पर छोटी कहानी लिखोगे)

7.क्या सनक का कोई सकारात्मक रूप हो सकता है? यदि हाँ तो ऐसी सनकों का उल्लेख कीजिए।

उत्तर– ‘हां’ यदि सनक किसी समाज कल्याण या मानव कल्याण की भावना से जुड़ी हुई है तो वह सकारात्मक हो सकती है। इसका जीता जागता उदाहरण दशरथ मांझी है। जिसने अपनी सनक के कारण लंबे चौड़े पहाड़ को काटकर रास्ता बना दिया। जिस रास्ते का उपयोग आज सभी लोग करते हैं।

लखनवी अंदाज का भाषा-अध्ययन

8.निम्नलिखित वाक्यों में से क्रियापद छाँटकर क्रिया-भेद भी लिखिए 

(क) एक सफेदपोश सज्जन बहुत सुविधा से पालथी मारे बैठे थे। 

उत्तर-
क्रिया पद- मारे बैठे थे
क्रिया भेद- अकर्मक

(ख) नवाब साहब ने संगति के लिए उत्साह नहीं दिखाया। 

उत्तर-
क्रिया पद- दिखाया
क्रिया भेद- सकर्मक 

(ग) ठाली बैठे, कल्पना करते रहने की पुरानी आदत है।

उत्तर- 
क्रिया पद- बैठे, करना है
क्रिया भेद- अकर्मक 

(घ) अकेले सफ़र का वक्त काटने के लिए ही खीरे खरीदे होंगे। 

उत्तर-
क्रिया पद– काटना, खरीदे होंगे
क्रिया भेद- सकर्मक 

(ङ) दोनों खीरों के सिर काटे और उन्हें गोदकर झाग निकाला। 

उत्तर-
क्रिया पद- काटे, निकालना
क्रिया भेद- सकर्मक

(च) नवाब साहब ने सतृष्ण आँखों से नमक-मिर्च के संयोग से चमकती खीरे की फांकों की ओर देखा। 

उत्तर-
क्रिया पद- देखा
क्रिया भेद- सकर्मक

(छ) नवाब साहब खीरे की तैयारी और इस्तेमाल से थककर लेट गए। 

उत्तर-
क्रिया पद- थककर लेट गया
क्रिया भेद- अकर्मक 

(ज) जेब से चाकू निकाला।

उत्तर-
क्रिया पद- निकाला
क्रिया भेद- सकर्मक

लखनवी अंदाज के अन्य प्रश्न उत्तर

प्रश्न- लखनवी अंदाज पाठ का क्या उद्देश्य है ?

उत्तर– लखनवी अंदाज पाठ का उद्देश्य यह है कि बिना कथ्य, बिना शिल्प, बिना पात्र, बिना प्रयोजन के कहानी नहीं लिखी जा सकती लेकिन एक स्वतंत्र रचना के रूप में इसे लिखा और पढ़ा जा सकता है। लखनवी अंदाज बनावटी जीवन पर व्यंग्य करने के उद्देश्य से लिखा गया है

प्रश्न- लखनवी अंदाज पाठ का क्या संदेश है? 

उत्तर– लखनवी अंदाज पाठ का संदेश यह है कि विकसित होते हुए आज के समाज में विदेशी संस्कृति और सभ्यता जड़ जमाती जा रही है। अतः हमें अपनी वास्तविकता को स्वीकार करके विदेशी जीवन शैली का त्याग करना चाहिए।

प्रश्न- लखनवी अंदाज के लेखक कौन है? 

उत्तर– लखनवी अंदाज पाठ के लेखक यशपाल है ।

प्रश्न- लखनवी अंदाज पाठ की साहित्यिक विधा क्या है? 

उत्तर– लखनवी अंदाज की विधा व्यंग्य है।

प्रश्न- लखनवी अंदाज पाठ में लेखक और नवाब साहब की प्रथम मुलाकात का वर्णन अपने शब्दों में कीजिए।

उत्तर– लेखक और नवाब साहब की प्रथम मुलाकात पैसेंजर ट्रेन के सेकंड क्लास बोगी में होती है। लेखक के डिब्बे में आने से नवाब साहब को थोड़ा भी अच्छा नहीं लगा । नवाब साहब लेखक की ओर न देखकर डिब्बे से बाहर देखने लगे । लेखक भी अपने स्वाभिमान को बनाए रखने के लिए ठान लिया कि पहले मैं नहीं बात करुँगा।

प्रश्न- बिना खीरा खाए नवाब साहब को डकार लेते देखकर लेखक क्या सोचने पर मजबूर हो गया ?

उत्तर– जब नवाब साहब खिरे को नाक के पास लगाकर बाहर फेंक देते थे तब लेखक यह सोचने पर विवश हो गया कि क्या इस तरह सुँघाने मात्र से पेट भर सकता है।

प्रश्न- लखनवी अंदाज पाठ के शीर्षक के औचित्य पर प्रकाश डालिए 

उत्तर– लखनवी अंदाज पाठ की विधा व्यंग है यह लखनऊ के आसपास की घटना प्रतीत होती है । इसमें नवाब साहब की शान, नवाबी सनक, नजाकत, जिनकी नवाबी कब की छीन चुकी है पर उनके कार्य व्यवहार में अब भी इसकी झलक मिलती है इन सब बातों को अपने में समेटे हुए यह शीर्षक लखनवी अंदाज पूर्णतः उपयुक्त है।

प्रश्न- लखनवी अंदाज के पात्र नवाब साहब के व्यवहार पर अपने विचार लिखिए 

उत्तर– लखनवी अंदाज के पात्र नवाब साहब का व्यवहार पूरी तरह दिखावा मात्र था। वह दिखावा नवाबी शान के रूप में, खानदानी रईसी के रूप में, नवाबी तरीके के रूप में, नजाकत और नफासत के रूप में था।

प्रश्न नवाब साहब खीरा खाने के अपने ढंग के माध्यम से क्या दिखाना चाहते थे?

उत्तर– नवाब साहब खीरा खाने के अपने ढंग के माध्यम से अपनी नवाबी, खानदानी रईसी, सर्वसंपन्नता, स्वाभिमान और राजसी ठाट-बाट दिखाना चाहते थे।

प्रश्न- लेखक ने नवाब साहब को नई कहानी का पात्र क्यों कहा है?

उत्तर लेखक ने नवाब साहब को नई कहानी का पात्र इसलिए कहा है क्योंकि उसने अपने जीवन में कभी भी इस तरह के नवाबीपन को नहीं देखा जो खीरा को खाए बिना उसे सूँघकर फेंक देता हो । इसलिए लेखक ने सोचा कि जब बिना खाए स्वाद की अनुभूति की जा सकती है तो बिना कथ्य, बिना शिल्प, बिना घटना के रचना हो सकती है।

प्रश्न- लेखक को नवाब साहब के किन हाव भाव से महसूस हुआ कि वह उनसे बातचीत करने के लिए तनिक भी उत्सुक नहीं है? 

उत्तर– लेखक एकांत के लिए सेकंड क्लास की बोगी में रिजर्वेशन कराया था जब वह ट्रेन में चढ़ता है तो नवाब जैसा दिखावा करने वाला एक व्यक्ति बैठा था लेखक के ट्रेन में चढ़ते ही वह लेखक की तरफ न देखकर खिड़की से बाहर देखने लगता है । इस तरह से लेखक को यह महसूस हुआ कि यह महाशय हमसे बातचीत करने के लिए तनिक भी उत्सुक नहीं है। फिर लेखक सोचता है कि शायद नवाब साहब भी सेकंड क्लास के डिब्बे को खाली होने का अनुमान लगाया होगा।

प्रश्न- लेखक ने खीरा क्यों नहीं खाया 

उत्तर– नवाब साहब ने लेखक से जब पहली बार खीरा खाने के लिए पूछा तो उसने मना कर दिया। नवाब साहब जब दोबारा खीरा खाने के लिए पूछते हैं तो लेखक के मुँह में पानी आ जाता है लेकिन वह अपने स्वाभिमान को बनाए रखने के लिए खीरा खाने से मना कर देता है। लेखक नवाब साहब की दृष्टि में गिरना नहीं चाहता था।

प्रश्न- नवाब के व्यवहार को देखकर लेखक के मन में क्या विचार आया 

उत्तर– नवाब के व्यवहार को देखकर लेखक के मन में नवाब के नवाबी सनक संबंधी तरह-तरह के विचार आए। जैसे कि नवाब साहब ट्रेन में अकेले यात्रा करना चाहते थे। दूसरी बात वह किसी से बातचीत नहीं करना चाहते थे ।इस तरह से लेखक को नवाब के व्यवहार में खानदानी तहजीब, नवाबी तरीका, नजाकत और नफासत के भाव पूरी तरह फरे हुए दिखाई दिए।

प्रश्न- मीयां रईस बनते हैं लेखक के कथन में निहित भाव है। 

उत्तर– नवाब साहब के खीरे के प्रति इस तरह का लगाव देखकर लेखक ने सोचा कि मियां रईस बनते हैं पर खीरे जैसे तुच्छ खाद्य वस्तु का इतना गहरा शौक रखते हैं खीरा जैसा फल साधारण लोग खाते हैं सच तो यह है कि रईस बनने का यह ढूंढ कर रहे हैं।

प्रश्न- नवाब साहब का खीरा खाने का ढंग किस तरह अलग था?

उत्तर नवाब साहब का खीरा खाने का ढंग इस तरह अलग था कि उन्होंने खीरे को खूब अच्छे से छीला और उसकी फांकी बनाई और उस पर नमक मिर्च और जीरा का मिश्रण छिड़का। नाक से खीरे को सूँघकर मन ही मन के स्वाद की कल्पना करते हुए खीरे को खिड़की से बाहर भेंक दिया।

प्रश्न- लेखक को अनुमान था कि सेकंड क्लास का डिब्बा होगा ?

उत्तर– लेखक को अनुमान था कि सेकंड क्लास का डिब्बा खाली होगा जिससे वह एकांत में बैठकर साहित्य सर्जना के विषय में चिंतन कर सकेंगे।

प्रश्न- नवाब साहब द्वारा खिड़की से बाहर की ओर देखते रहना किस बात की ओर संकेत करता है?

उत्तर– लेखक के डिब्बे में प्रवेश करते ही नवाब साहब द्वारा खिड़की से बाहर देखते रहने से यह पता चलता है की वह लेखक या ट्रेन में चढ़ने वाले किसी भी यात्री से बातचीत या किसी तरह का विचार-विमर्श या किसी तरह का लेन-देन करने के मूड में बिल्कुल नहीं थे।

लखनवी अंदाज के शब्दार्थ

मुफस्सिल का अर्थ केंद्रित नगर के आसपास का स्थान
सफ़ेदपोश का अर्थ
हर व्यक्ति या सम्मानित व्यक्ति

किफायत का अर्थ
कम खर्च करने वाला या समझदारी से उपयोग करने वाला

आदाब अर्ज़ का अर्थ
अभिवादन का एक तरीका व्यास सम्मान का एक ढंग

गुमान का अर्थ
भ्रम

एहतियात का अर्थ
सावधानी

बुरक देना का अर्थ
छिड़क देना

स्फुरण का अर्थ
हिलना या फड़कना

प्लावित का अर्थ
पानी से भर जाना

पनियाती का अर्थ
रसीली

मेदा का अर्थ
आमाशय

तसलीम का अर्थ
सम्मान में

सिर खम करना का अर्थ
सिर झुकाना या सम्मान देना

तहज़ीब का अर्थ
शिष्टता

नफ़ासत का अर्थ
स्वच्छता

नज़ाकत का अर्थ
कोमलता

नफ़ीस का अर्थ
बढ़िया

एब्स्ट्रेक्ट का अर्थ
सूक्ष्म, अमूर्त

सकील का अर्थ
आसानी से न पचने वाला
करीने से का अर्थ अच्छी तरह सजाकर
मुहँ से पानी आना मुहावरे का अर्थ ललचाना
शराफत का अर्थ सज्जनता
गर्व का अर्थ अभिमान
लजीज का अर्थ स्वादिष्ट
नामुराद का अर्थ जिसकी इच्छा अधूरी रह गई हो
वासना का अर्थ कामना

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